शीत - कविता - नंदिनी लहेजा

हो रही शांत अब तपन धूप की,
हवाएँ पंख फहरा रहीं।
रवि को है जल्दी वापसी की,
निशा, शशि संग इतरा रही।

गई वर्षा अपने घर वापस,
अब शीतऋतु की बारी है।
प्रकृति भी हो रही चंचल,
शीत के स्वागत की तैयारी हैं।

ठिठुरन हो रही महसूस रात में,
कम्बल हमको भाने लगे।
स्वेटर शॉल निकलने की बारी,
अलाव भी हम जलाने लगे।

चाय की चुस्की, गुड़ की चिक्की,
गाजर का हलवा, चाट और टिक्की,
खाने का, मस्त मौसम है शीत का।
तब ही तो, सब के मन को,
अति भाता है सुहाना मौसम शीत का

नंदिनी लहेजा - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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