मेरे प्रियतम तुम चले आना,
मेरे प्राणों को गले लगाना।
मुझमें कितनी बेचैनी है
इसे बयाँ करूँ मैं कितने शब्दों में?
तुम्हारे प्रेम-विरह में कितनी आहत हूँ
इसे बता नहीं सकती मैं लफ़्ज़ों में।
मेरे प्रेम की बगिया में, सावन आए
तुम ऐसी बरसात बन जाना।
मेरे प्रियतम तुम चले आना,
मेरे प्राणों को गले लगाना।
तुमसे मिलने की कितनी चाहत थी,
हृदय में अजीब अकुलाहट थी।
माना कि, मेरे इस ज़िद्द को तुमने पूरा किया
लेकिन उस मिलन में भी कितनी दूरी थी।
मेरे प्रेम मिलन की मधुर बेला आए तो,
तुम प्रयाग का संगम बन जाना।
मेरे प्रियतम तुम चले आना,
मेरे प्राणों को गले लगाना।
तुम्हारे गले लग जाऊँ ऐसी चाहत थी,
लेकिन, चाह कर भी कुछ कह न पाई,
इतनी मुझमें शर्माहट थी।
वो गुज़रा वक़्त भी कितना बेगाना था,
मेरे मिलन के क्षण ही, तन्हाई का बहाना था,
मेरे जीवन के पतझड़ मौसम में,
तुम वसंत बन जाना
मेरे प्रियतम तुम चले आना,
मेरे प्राणों को गले लगाना।
नीलम गुप्ता - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)