संदेश
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१२) अंग्रेजों के संग, मिले थे कई प्रशासक फैला था आतंक, क्षेत्र में महा भयानक। पंचेत वीरभूम, रामगढ़ के बटमारें। छेड़ दिए संग्राम, अध…
जाने कितना वक़्त लगेगा - गीत - डॉ. अरविंद श्रीवास्तव "असीम"
जाने कितना वक़्त लगेगा उत्तर पाने में मुझको अपना भला लगा गूंगा बन जाने में। उगते सूरज के स्वागत में हाथ जोड़ सब खड़े हुए अंधकार से लड…
कर्ज़ - कविता - अवनीत कौर
ज़िंदगी में हर इक रिश्ते का अपना कर्ज़ है ज़िंदगी में आए रिश्तों की अपनी ही इक गर्ज है इन रिश्तों के कर्ज़ ने भरी ज़िंदगी में मर्ज है। कर्ज…
हम वो भारत बनाएंगे - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
नील गगन तले हौसलों की उड़ान भरकर, शिक्षित और सुदृढ़ हर जमात बनाएंगे। संघर्ष के बल संगठित होकर एक दिन, भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे…
नमन भीम मसीहा को - कविता - हरदीप बौद्ध
एक मसीहा हुए जहां में भीमराव जिनका था नाम। सारी दुनिया करें नमन कर गये वो ऐसे काम।। था जब भेदभाव समाज में तब की थी आपने पढाई। फि…
नयापन की तलाश - कविता - मधुस्मिता सेनापति
मानव हैं हम हमें थोड़ा नहीं कुछ अधिक चाहिए रिश्ते अब हो चुके हैं पुरानी इसमें हमें परिवर्तन चाहिए...!! आज जो हैं उसमें बदलाव चाहिए ज…
परोपकार - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
संवेदनशील भाव संवेदनाओं के स्वर पर उपकार की निःस्वार्थ भावना गैरों की चिंता से जोड़कर स्वेच्छा से सामने वाले की पीड़ा से/मर्म से खुद …
बरसे छन-छन - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
उनसे दूर न जाना अब मन मत करना कोई भी अनबन जज्बों में बस प्यार बसा लें महका ले रिश्तों का गुलशन ख़्वाबों से करलें समझौता नींदों म…
महापुरुषों को सलाम - कविता - प्रीति बौद्ध
लिख दिया जिसने स्वर्णिम भविष्य हमारा बाबा साहब की उस कलम को सलाम। दी आजादी हमें अधिकारों के लड़ने की उस संविधान को करते हम सदा सलाम…
अगर भीम न होते - कविता - नीरज सिंह कर्दम
ना कोई सम्मान मिलता ना मिलता कोई अधिकार आज भी कीड़ों मकोड़ों की तरह जमीन पर रेंगते होते हम अगर भीम न होते। पीछे झाड़ गले में हाण्…
विनम्रता है सबसे बड़ी खूबसूरती - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जी हाँ यह बिल्कुल सत्य है कि विनम्रता का अर्थ ही यही है कि अहंकार से मुक्त होकर दूसरों को खुद के समान सम्मान देना। विनम्रता एक ऐसा गुण…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ११) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(११) तिलका ने विद्रोह, किया क्यों हमें बताओ? राजमहल भू छोह, कथा की सार सुनाओ। पहाड़िया संथाल, दमन की राम कहानी। फूट नीति संजाल, प्रथा क…
वाह रे इंसान - कविता - गणपत लाल उदय
वाह रे इंसान अब तो हद ही हो गई । अपनी औरत के आगे माँ रद्द हो गई।। सीचा था जिसने छाती का दूध पिलाकर। आज पानी के लिए भी मोहताज हो गई।…
हाँ मैं किसान हूँ - कविता - आर एस आघात
सरकार की नीतियों से, खेती हुई है चौपट, हालात से बदहाल हूँ, इसलिए परेशान हूँ। .... हाँ मैं किसान हूँ। मुझको मिला न वाजिब, दाम मेरी फसलो…
चाहत-ए-इश्क़ - ग़ज़ल - विकाश बैनीवाल
नायाबी मुल्क़ निसार दूँ मैं तेरी चाह में, नज़रें इनायत डाल ज़िंदगी की राह में। फ़ितरत-ओ-सादग़ी में फ़ना हूँ तेरी, लाज़ परख़ी मैंने कई दफ़ा न…
ज़िंदगी तो हर हाल में जीनी है - कविता - अमित अग्रवाल
हो लाख दुःख जीवन मे, चेहरे पर एक अभिनयित मुस्कान सजोनी है। हर नए दिन की गिनती, ढलती रात में खत्म कर, ज़िन्दगी तो हर हाल में जीनी है…
ख़्वाब आसमाँ का - कविता - मिथलेश वर्मा
उनका नही ये आसमाँ, जो थक के यूँ, सो गये। ख़्वाब देखे आसमाँ के फिर जमीं के ही, क्यों हो गये? देखो सुर्य और चाँद को, क्या! बादलों मे खो ग…
सामान - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
बेमतलब रखी है कई चीजें , घर के हर कौनो में । किसे मालूम काम की कितनी है वो , कब कितनी किसके आएगी काम , कोई नहीं जानता , पर मालूम …
पनिहारी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नयन लजाये लचकत जाये पनघट की पनिहारी। आँचल ढाये लट बिखराये सिर पे घूँघट भारी। प्यासे की प्यास बुझाओ घट से दो बाते कर लो ओ सजन…
मौसम - कविता - रमाकांत सोनी
मौसम सदा बदलता रहता, बदले मन के भाव, कभी बहारे लेकर आता, बसंत का लेकर नाम। फागुनी मस्ती में इतराता, सावन बनकर लहराता, दिवाली के …
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