हम वो भारत बनाएंगे - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

नील गगन तले हौसलों की उड़ान भरकर,
शिक्षित और सुदृढ़ हर जमात बनाएंगे।
संघर्ष के बल संगठित होकर एक दिन,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


अंधविश्वास और पाखंड को नकारकर,
प्रगतिशील व वैज्ञानिक सोच अपनाएंगे।
मानव का हर मानव से भेद मिटाकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


सर्वधर्म समभाव सब में हम पैदा कर,
बुद्ध के शान्ति अहिंसा का परचम लहराएंगे।
विश्व-बंधुत्व  की  मशाल को थामकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


हम भारतीयों को मिले समान अवसर,
कामयाबी व खुशहाली के गीत गुनगुनाएंगे।
योग्यता से पहुँच सके असंभव मंजिल,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


ना कोई श्रेष्ठ और ना कोई हीन हो,
जाति-भेद के सब बंधन तुड़वाएंगे।
इंसान को इंसान रूप में पहचान मिले,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


अंधमान्यताओं से बाहर निकलकर,
परचोंं और चमत्कारों को हम ठुकराएंगे।
विश्वास करके विशाल संविधान पर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


घुटन भरा यह जीवन जीना है बेकार,
अब हम सुखी-सम्पन्न जीवन बिताएंगे।
गंदी सोच और गंदे कर्म छोड़कर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


नर के साथ नारी भी कदम से कदम मिलाएं,
यातनाओं से दूर  खुशी के दिन बिताएंगे।
भाग्य के  भरोसे कभी भी  ना बैठकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


हम राष्ट्र को पूँजीपतियों से आज़ाद कर,
जन-जन के  हाथों में  अब थमाएंगे।
अमीर और दरिद्र के फासले को पाटकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


भारत की आन बान व शान बनकर,
इसकी सुरक्षा में हम हाथ बटाएंगे।
संकट के हर दोर में विजयी बनकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


महामानव के स्वर्णिम स्वप्नों को जोड़कर,
रूके हुएं कारवें को आगे हम बढ़ाएंगे।
यह धरा संकीर्णता से निकर विस्तृत हो,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


अरमान बेकार ना होने देंगे उस महान के,
संगठित होकर मास्टर चाबी हथियाएंगे।
फिर से महानता की पहचान बनाकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


सारी सुख-सुविधाएं सुलभ हो जन को,
सोयी हुई कौम को नींद से जगाएंगे।
आज महापरिनिर्वाण पर प्रण करते हैं,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


ना उठाएंगे कोई बंदूक और तलवार,
कलम को  अपना  हथियार बनाएंगे।
अज्ञानता के पर्दे ज्ञान से हटाकर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


दबे-कुचलें और अछूतों तक पहुँच बनाकर,
शत-प्रतिशत संविधान लागू करवाएंगे।
विरोधी सोच को कर चकनाचूर,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


आपकी उस कलम के हम है कायल,
आपके त्याग और बलिदान को बचाएंगे।
हम लेते हैं संविधान की कसम आज,
भीम ने सोचा, हम वो भारत बनाएंगे।


कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)


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