मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(१२)
अंग्रेजों के संग, मिले थे कई प्रशासक
फैला था आतंक, क्षेत्र में महा भयानक।
पंचेत वीरभूम, रामगढ़ के बटमारें।
छेड़ दिए संग्राम, अधिप संग बिना विचारे।।


कालान्तर क्रमवार, अशांति क्षेत्र में फैली।
कर लेकर तकरार, हुई निकली थी रैली।
खूंटी और तमाड़, सहित सिल्ली औ राहे।
कर देना इनकार, किए थे उठा निगाहें।।


अंग्रेज दमन चक्र, सहन न किए विद्रोही।
चमचें करते फ़क्र, करों की किए उगाही।
जमीन बंदोबस्त, क्रांति की थी इक कारण।
जनजीवन था त्रस्त, चाहते सभी निवारण।।


दबा दिए अंग्रेज, जंग की आग यकीनन।
जंग पड़ी निस्तेज, गिरफ्तार हुए नेता गण।
हे नभ के मंदार! क्रांति क्रमवार बताओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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