सामान - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"

बेमतलब रखी है कई चीजें ,
घर के हर कौनो में ।
किसे मालूम काम की कितनी है वो ,
कब कितनी किसके आएगी काम ,
कोई नहीं जानता ,
पर मालूम है हमें घर के उस
बुज़ुर्ग का ,
जो बिना बात करता कई प्रश्न बेवज़ह , बेकार का ।
निगाहों में खटकता है ये ,
सामान घर घर बेकार सा ।


अरुण ठाकर "ज़िन्दगी" - जयपुर (राजस्थान)


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