बरसे छन-छन - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

उनसे  दूर न जाना अब मन
मत करना कोई भी अनबन


जज्बों  में बस प्यार बसा लें
महका ले रिश्तों का गुलशन


ख़्वाबों से करलें समझौता
नींदों में भर ले अपनापन


जीवन  जिस्म  नहीं होता है
कहना सिर्फ़ रूह को जीवन


बिन लफ़्ज़ों के सीख बोलना
प्यार नज़र से बरसे छन- छन


झूम - नाच-गा मौज मना तू
लोग  कहें  चाहे  पागलपन


खुद को मनमौजी रख "अंचल"
रूठे  -  माने   जैसे   बचपन।।।।


ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)


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