विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
चाहत-ए-इश्क़ - ग़ज़ल - विकाश बैनीवाल
शनिवार, दिसंबर 05, 2020
नायाबी मुल्क़ निसार दूँ मैं तेरी चाह में,
नज़रें इनायत डाल ज़िंदगी की राह में।
फ़ितरत-ओ-सादग़ी में फ़ना हूँ तेरी,
लाज़ परख़ी मैंने कई दफ़ा निग़ाह में।
बेनज़ीर लब-ओ-लहज़े का सलीक़ा,
ग़ज़लों की हुज़ूम लगी तेरी पनाह में।
शेर-ओ-शायरी का काफ़िला खड़ा,
अर्ज़ करता मैं तेरी इक-इक वाह में।
इज़ाफ़ा तो किया इश्क़-ओ-वस्ल ने,
'विकाश' फंस बुरा गया इस ग़ुनाह में।
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