मौसम - कविता - रमाकांत सोनी

मौसम सदा बदलता रहता,
बदले मन के भाव,
कभी बहारे लेकर आता,
बसंत का लेकर नाम।


फागुनी मस्ती में इतराता,
सावन बनकर लहराता,
दिवाली के दीयों से यह,
जगमग जगमग मुस्काता।


कभी कड़ाके की सर्दी हो,
तपती जून की दोपहरी,
कभी पतंगों का मौसम आता,
मनाता मौज ग्रामीण शहरी।


नाना रंग बदलता मौसम,
होली के रंगों में मिलकर,
जीवन में उल्लास लाता,
जनजीवन में घुलकर ।


पतझड़ का मौसम भी तो,
जनमन को समझाता है,
जिसने त्याग सीख लिया,
वो नवसृजन को पाता है।


मौसम की भांति जीवन में,
हर रंग होना चाहिए,
सद्भावों का फूल खिले,
बस प्रेम सलोना चाहिए।


रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)


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