संदेश
मज़दूर - कविता - राज कुमार कौंडल
हर सुबह उठकर जीवन की तलाश में जाता हूँ, कुदाल फावड़ा कस्सी बेलचा हैं मेरे संगी साथी, ये मेरे संग और मैं इनके संग प्रीत निभाता हूँ। धोत…
इमारतें - कविता - ऊर्मि शर्मा
शहर की ऊँची इमारतें ख़ून पसीना पिए खड़ी है इसी गाँव के ग़रीब मज़दूर का पल में घुड़क दिया फुटपाथ से उसे उखाड़ आशियाना चार-हाथ का उ…
मेरा दुःख मेरा दीपक है - कविता - गोलेन्द्र पटेल
जब मैं अपने माँ के गर्भ में था वह ढोती रही ईंट जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट जब मैं दुधमुँहा शिशु था वह अपनी पीठ पर मुझे और सर पर …
मैं बुनकर मज़दूर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मैं बुनकर मज़दूर हुनर मेरा लूम चलाना। मेरी कोई उम्र नहीं है... मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ जहाँ मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी च…
मज़दूर की दशा - कविता - रूशदा नाज़
एक पहर, गर्मियों के दिन तमतमाते धूप में दूर एक मज़दूर को भवन बनाते देखा, झूलसती लू में न कोई छाया रंग-बिरंगी पगड़ी को देखा, ढुलकते सीकर…
मैं मज़दूर - कविता - प्रमोद कुमार
बीती रात हुई सुबह की बेला, जीने का फिर वही झमेला, निकल पड़ा सिर बाँध अँगोछी, कमाने घर-परिवार से दूर। मैं मज़दूर, बेबस मजबूर! हिम्मत के …
मैं महत्त्वपूर्ण हूँ - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' | मज़दूरों पर कविता
मज़दूर दिवस पर मज़दूर वर्ग भी समाज में महत्वपूर्ण हैं इस सम्मान की भावना के साथ उनके महत्व को दर्शाती कविता। कहने को मैं मज़दूर दीन हीन स…
मज़दूर - कविता - सुनील कुमार महला
मज़दूर पर कविता लिखना टेढ़ी खीर है कवि मज़दूर जितनी मेहनत नहीं करता लेकिन यह कटु सत्य है सच्चा मज़दूर मेहनत करता है मेहनत, ईमानदारी की खा…
बँधुआ मज़दूर - कविता - संजय राजभर 'समित'
मर गया रामू जीवन भर क़र्ज़ा चुकाते-चुकाते पर चुका नहीं पाया। कभी आधा सेर मज़दूरी कभी डाँट पेट की आग में फिर उसका बेटा... बँधुआ फिर …
मज़दूर - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
रात दिन मेहनत करता जी भर पीता पानी, तंगी में भी ख़ुश रहता मज़दूर तेरी यही कहानी। औरों की सेवा करता सर्दी गर्मी या बरसे पानी, तन पे कपड़ा…
निराला जी की मज़दूरिन - कविता - रमाकान्त चौधरी
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है, मगर क़िस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है। किन-किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है, मेहनत से…
गिरती दीवारें - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
गिरती दीवारें और भी बहुत कुछ गिरा लाती हैं अपने साथ, सिर्फ़ मिट्टी और रेत के कण नहीं, जल के बूँद और लोहा भी नहीं, बल्कि उन मज़दूरों का …
मज़दूर - कविता - कुमुद शर्मा "काशवी"
मैं हारा नहीं... हालातों का मारा हूँ जो डरता नहीं मेहनत से कभी, वो मज़दूर प्यारा हूँ। चाहे तपती धूप हो, या हो राह पथरीली कर्मपथ है जीवन…
दुख ही सच्चा मित्र है - गीत - स्नेहलता "स्नेह"
पैर छलनी रोता अंतस हँसता छाया चित्र है, वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है। ख़ूब मेहनत से कमाते रोटियाँ दो जून की, भू बिछौना,…
परिस्थिति मज़दूर की - कविता - मिथलेश वर्मा
बोल के घर से निकला था, पैसे कमा के आऊँगा। कपड़ें, खिलौने लाऊँगा, बच्चों को शिक्षा दिलाऊँगा।। जब शहर मे कोरोना छाया, पुरे देश को बंद करव…
मज़दूरों की कहानी - कविता - संदीप कुमार
एक मज़दूर की ज़िन्दगी, कुछ शब्दों में सुनानी है। ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।। किसी गाँव, किसी बस्ती में, एक छोटा सा मक…
मज़दूर की क़िस्मत - कविता - समय सिंह जौल
ऊँचे कँगूरे किलों में, मीनार और महलों में, अपना खून पसीना लगाता हूँ। संगमरमर से सुंदर दीवार सजाता हूँ।। शाम को चटनी से खा कर, गगन को छ…
मज़दूर - कविता - तेज देवांगन
हाँ मैं मज़दूर हूँ, बेबसी और लाचारी से मजबूर हूँ। हाँ मैं मज़दूर हूँ, छल प्रपंच मुझे नहीं आते, सीधा सुगम हम राह बनाते। करते नहीं कोई बुर…
मज़दूर है मजबूर - कविता - गणपत लाल उदय
मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर हालत ने कर दिया मजबूर। गाँव छोड़ शहर में आया पेट परिवार का भर नहीं पाया।। दिन भर में इतना ही कमाता शाम को ख…
मैं मजदूर हूँ - कविता - माहिरा गौहर
कभी निकले थे जो गाँव से शहर की ओर रोटी की तलाश में वो रोटी के टुकड़े पटरियों पर मिले राह तक ते उस खाने वाले की आस में क्या उन्हें कुचल…
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