कृष्ण अर्जुन संवाद - कविता - सुनील गुप्ता

कृष्ण अर्जुन संवाद - कविता - सुनील गुप्ता | Hindi Kavita - Krishna Arjun Samvaad. Hindi Poem Mahabharat Krishna Arjun. कृष्ण अर्जुन संवाद पर कविता
युद्ध में अपनों को देख,
अर्जुन का गाण्डीव थम गया,
बालक की भाँति रोता देख,
सारा पांडव दल सहम गया।
लड़खड़ाते पैरों के सहारे,
रथ पर वह विराजमान रहा,
थर्राते हाथों में अपने,
गाण्डीव को भी थाम रहा।
हे केशव! युद्ध न कर पाऊँगा,
अपनों से ना मैं लड़ पाऊँगा,
मृत्यु सैया पर इन्हें सुलाकर,
क्या मैं ज़िंदा रह पाऊँगा?
यहाँ सारे मेरे अपने हैं,
किस-किस पर मैं वार करूँ?
सबकी गोद में बड़ा हुआ हूँ,
किस-किस का मैं संघार करूँ?
हे माधव! युद्ध तुम रुकवा दो,
यह विजय पताका झुकवा दो,
कुछ और ना चाहिए अब हमें,
एक शांति संदेश तुम भिजवा दो!
सुन बातें ऐसी अर्जुन की,
केशव का हृदय फट गया,
जिस पर था अभियान प्रभु को,
वहीं युद्ध से हट गया।
हे अर्जुन! यह क्या कह रहे हो?
भावुकता में क्यों बहक रहे हो,
उठाओ गाण्डीव बस तीर चलाओ,
प्रतिशोध में तुम दहक रहे हो।
मत सोचो ये कौन तुम्हारे हैं?
यहाँ सब के सब हत्यारे हैं,
सबने मिलकर पाप किया है,
जो तुम्हारी नज़रों में प्यारे हैं।
तुम कायर हो गए हो पार्थ,
यह कैसी तुम्हारी बेशर्मी है,
रिश्ता उन्हीं से निभाने चले हो,
जो बहुत बड़े अधर्मी है।
जब हाथ जोड़ अर्जुन ने अपना,
सिर प्रभु चरणों में रख दिया,
मार्गदर्शन करने की ख़ातिर,
केशव ने गीता का ज्ञान दिया।
हे अर्जुन! याद करो वह पल,
जब मैंने सबसे संवाद किया,
तुम सब पाण्डव की ख़ातिर,
मैंने कौरवों से विवाद किया।
याद करो वह सभासद जहाँ,
तुम सब ने जुआ हारी थी,
दुशासन ने अठ्हास करके,
पाञ्चाली की वस्त्र उतारी थी।
कैसे एक निहत्थे अभिमन्यु को,
कौरव दल ने ललकारा था,
कैसे तुम्हारे अनमोल रतन को,
मिलकर सौ-सौ ने मारा था।
हे पार्थ! उठो मुझको जानो,
मेरे स्वरूप को तुम पहचानो,
मैं सबका भाग्य विधाता हूँ,
मैं सारी सृष्टि चलाता हूँ।
तू मुझमें है, मैं तुझ में हूँ,
मैं सृष्टि के हर कण में हूँ,
गाण्डीव धारण तुम करते हो,
पर रण में मैं ही लड़ता हूँ।
गीता सार सुनकर केशव से,
अर्जुन को ये एहसास हुआ,
धर्म युद्ध करने की ख़ातिर,
रण में वह तैयार हुआ।
रौद्र रूप देख अर्जुन का,
कौरव दल भयभीत हुआ,
चिराग़ महल का बुझ जाएगा,
धृतराष्ट्र को भी विदित हुआ।
बाणो की वर्षा देख अर्जुन की,
कौरव दल में कोहराम मचा,
बिछने लगी लाशों की सैया,
जैसे मृत्यु का स्वयंवर सजा।
कुरुक्षेत्र की भूमि पर पार्थ ने,
योद्धाओं को मार गिराया,
सारी धरती लाल हो गई,
अर्जुन ने ऐसा कोहराम मचाया।

सुनील गुप्ता - गायघाट, बक्सर (बिहार)

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