दुख ही सच्चा मित्र है - गीत - स्नेहलता "स्नेह"

पैर छलनी रोता अंतस हँसता छाया चित्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।

ख़ूब मेहनत से कमाते रोटियाँ दो जून की,
भू बिछौना, नभ है दोहर छाँव चारू मून की।
स्वेद देता तन को ठंडक केवड़े सा इत्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।।

ईंट भट्टी सा तपे तन मन भी मानो साँचा है,
देश की वो रीढ़ बन कर देता आया ढाँचा है।
ढाँचा बन कर रह गया ख़ुद जो सभी का मित्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।।

अपनी मिट्टी त्याग कर जो गिट्टी बालू ढो रहे,
बाँध कर कपड़ा उदर जल पी के भूखे सो रहे।
कर्म के आँचल में है दुख बात यह विचित्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।।

तालाबंदी के क़हर से लौटते हैं गाँव को,
नवतपा की धूप में तरसे बेचारे छाँव को।
गठरी को छतरी कहे वो जिनका मन पवित्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।।

दौर चाहे हो कठिन हँसना तुम इनसे सीख लो,
काम कर के खाना भोजन मत किसी से भीख लो।
कर्म की पूजा ही तो मज़दूर का चरित्र है,
वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है।।

स्नेहलता "स्नेह" - सीतापुर, सरगुजा (छत्तीसगढ़)

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