मज़दूरों की कहानी - कविता - संदीप कुमार

एक मज़दूर की ज़िन्दगी, कुछ शब्दों में सुनानी है।
ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।।

किसी गाँव, किसी बस्ती में, एक छोटा सा मकान।
एक टूटी सी चारपाई, ज़मीं पर रखा कुछ सामान।।
रात को बहुत सारे सपने देखना, खुली आँखों से।
फिर हर सुबह जल्दी उठकर, ढूँढना कोई काम।।

क्योंकि परिवार के लिए, शाम को रोटी जो लानी है।
ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।।

थोड़ा राशन की उधारी, थोड़ा कर्ज़ उसके नाम पर।
एक झोला, लेकर निकल जाना हर रोज़ काम पर।।
काम मिल गया तो होंठो पर मुस्कुराहट लाखों की।
वरना मायूस चेहरा, बैठता नुक्कड़ की दुकान पर।।

घर जाए कैसे खाली हाथ, बच्चों से नज़र मिलानी है।
ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।।

चमकती तेज धूप, भूख, प्यास, सहन कर जाता है।
बारिश व जाड़ा भी, मेहनत के पसीने से डर जाता है।।
घर को संभालते, बच्चों की परवरिश करते-करते।
वो एक रोज़ देखा हुआ ख़्वाब भी, कहीं मर जाता है।।

इसने अपनी पूरी ज़िन्दगी शायद ऐसे ही बितानी है।
ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।।

संदीप कुमार - नैनीताल (उत्तराखंड)

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