संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता

संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता | Labour Day Kavita - Sangharsh Ka Suryoday. Hindi Poem On Labours Day
धूप की पहली किरण,
उजागर करती अनगिनत चेहरे,
जो झुकते हैं धरती पर,
उठाते हैं भार,
बनाते हैं राहें।
हाथों में खुरदरापन,
धमनियों में बहता पसीना,
आँखों में संकल्प की ज्वाला,
हर सुबह एक नया युद्ध,
अस्तित्व की रक्षा का।
ईंटों की ठंडी छुअन,
लोहे की तपती गर्मी,
खदानों की घुटन भरी साँसें,
कारखानों का शोरगुल,
यह उनकी दुनिया है।

कोई सपना बुनता है छोटे घर का,
कोई बच्चों की हँसी के लिए जूझता है,
कोई बेहतर कल की उम्मीद में,
सहता है अन्याय,
चुपचाप भरता है घाव।
अधिकारों की दबी आवाज़ें,
शोषण की कड़वी कहानियाँ,
पर हौसला चट्टान सा अटल,
एकजुट होने की शक्ति,
संघर्ष का बीज अंकुरित होता है।

लम्बी और कठिन यात्रा,
अंधेरी सुरंगों से रोशनी की ओर,
हर मुश्किल क़दम पर,
बढ़ती जाती है दृढ़ता,
जन्म लेती है सफलता।
वे नींव के पत्थर हैं,
हर इमारत, हर प्रगति के पीछे,
उनकी अनथक मेहनत का फल,
आज चमक रहा है,
कल और चमकेगा।

यह दिवस मेरा है,
लाखों अनसुनी आवाज़ों का,
जो बनाते हैं दुनिया को,
अपनी निष्ठा और श्रम से,
सलाम है उनकी जिजीविषा को।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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