हर सुबह उठकर जीवन की तलाश में जाता हूँ,
कुदाल फावड़ा कस्सी बेलचा हैं मेरे संगी साथी,
ये मेरे संग और मैं इनके संग प्रीत निभाता हूँ।
धोती कुर्ता और गमछे में सदा ख़ुश रहता हूँ,
ज़्यादा मिले या न मिले पर मेहनत का हक़ मिले,
वो जितना भी हो मिलने पर सदा मुस्कुराता हूँ।
क्षुधा शांत करने को हर रोज़ घर से निकलता हूँ,
कभी तो रुखी सूखी खा लेता हूँ मेवे समझ कर,
और कभी पानी को भी अन्न समझ लेता हूँ।
अकसर उजाड़ राहों को सड़क बना देता हूँ,
अपने पसीने से सींच कर ज़मीन के हर ज़र्रे को,
सहरा में भी अपनी मेहनत से फूल खिला देता हूँ।
बड़े-बड़े महलों को मेहनत से सजाता हूँ,
सब आराम से रहते हैं अपने अपने महलों में,
पर मैं अपनी झोपड़ी में ही सुकून पाता हूँ।
सर्दी गर्मी को अपने मिज़ाज से बेअसर करता हूँ,
सजा रहता है मेरा भाग्य और हाथ छालों से,
मज़दूरी है कर्म मेरा, तभी तो मज़ दूर कहलाता हूँ।
राज कुमार कौंडल - बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)