डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)
अस्मिता - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
सोमवार, जनवरी 08, 2024
कौन हो बे तुम?
पसमांदा मुसलमान हैं साहब
अबे कौन सी जात से हो
अन्सारी हैं साहब
ओह्ह...
जुलाहा हो!
जी साहब।
आपके तन को ढँकने वाला
मेहनत का खाने वाला
ग़रीब किंतु ख़ुद्दार।
मुझे लगा मुसलमान हो!
ज...ज... जी... जी साहब हूँ तो मुसलमान ही
आपकी क़तार से कोसों दूर
अत्यंत पिछड़ा हूँ
और इसी देश का मूल नागरिक भी हूँ
पर आपकी रोटी-बेटी से अलग।
अरे नहीं... मुसलमान तो भाई-भाई होते हैं न!
जी साहब होते हैं न
चुनावों में, जलसों में, रैलियों में
और नौकरियों में?
यहाँ साहब होते हैं, हम नहीं।
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