संदेश
चिड़िया की वेदना - गीत - भगवत पटेल
मेरी इक छत की मुँडेर से, बोले एक चिरैय्या, सुन भैय्या! सुन भैय्या! सुन भैय्या!! पानी नही बरसाता बादल, मैं प्यासी की प्यासी, भूखे प्यास…
पर्यावरण - कविता - नीरज सिंह कर्दम
हरियाली का कभी होता था डेरा जंगल और ख़ूब अँधेरा, जानवरों की दहाड़, पक्षियों का डेरा, आज वहाँ पर है फ़ैक्टरियों का बसेरा। आसमाँ भी बिना प…
प्रकृति और मानव - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज
समय बहुत विपरीत है, बुरा सभी का हाल। सावधानी रखो सभी, चलो सभलकर चाल।। इक दूजे की मदद ही, हो मानव का कर्म। कोरोना बन घूमता, आज मनुज क…
आओ मिल कर पेड़ लगाएँ - कविता - गणपत लाल उदय
आओं सभी मिल कर पेड़ लगाएँ, पर्यावरण को साफ़ स्वच्छ बनाएँ। पेड़ो से ही मिलती है ऑक्सीजन, जिससे जीवित है जीव और जन।। पढ़ा है मैने पर्यावर…
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ, पहले इसे बचाने की क़सम खाएँ। पेड़ कभी न काटे जाएँ, गर स्वार्थी मानव इंसान कभी बन पाएँ। परिवेश में पेड़-पौधे पशु-प…
सब मिल कर पेड़ लगाए - गीत - रमाकांत सोनी
पेड़ लगाओ सब मिल कर, जीवन की जंग जीतनी है। सोचो बिन प्राणवायु के, मुश्किलें आएँगी कितनी है।। सोचो समझो मनन करो, कारण सहित भेद पहच…
वो बरगद - कहानी - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"
हर दिन की तरह आज भी मैं और मेरे मित्र सूर्यकांत सुबह सुबह घूमने निकले थे, सुबह की ताज़ी हवा के साथ एक छोटी सी सैर पर हम दोनों प्रतिदिन …
मत काटो पेड़ भाई - गीत - रमाकांत सोनी
कैसी विडंबना हो रही है, पेड़ों की छटा खो रही है। वृक्ष विहिन वन कर दिए, चेतना मनुज की सो रही है। निज स्वार्थ दोहन कर डाला, मचा प्र…
बस बे-हिसाब - कविता - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"
तुम काट रहे पेड़ों को क्यों, जो तुम्हें प्राणवायु देते। नहीं स्वार्थ कोई, निस्वार्थ भाव, बस बे-हिसाब आयु देते।। तुमने देखा भी सूरज को,…
चलो लगाएँ वृक्ष हम - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
ख़ुद जीवन का रिपु मनुज, खड़े मौत आग़ाज़। बिन मौसम छाई घटा, वायु प्रदूषित आज।। भागमभागी ज़िंदगी, बढ़ते चाहत बोझ। सड़क सिसकती ज़िंदगी, वाहन बढ़ते…
काटते जंगल - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
काटते जंगल वे बनाते हैं कंकरीटों के फिर महल। उसी में रमते हैं खुशी से जाता मन उसी में बहल। दिलो दिमाग़ पर हावी है धन दौलत की बस चाह। द…
एक वृक्ष की पीड़ा - आलेख - संजय राजभर "समित"
मैं वृक्ष हूँ। प्रकृति का फेफड़ा हूँ, मैं निःसंदेह निःस्वार्थ भाव से प्रकृति के संचालन में अनवरत अथक संघर्ष करता हूँ। फल-फूल, छाँव, लक…
मुझे फ़ख़्र है - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
कभी बीज था जो किसी वृक्ष का, कभी पादप, औ अब वो बृक्ष बन गया। जीता था कभी जो स्वयं के लिए, जीना जनहित अब बस लक्ष बन गया।। वो अठखेलिया…
प्राकृतिक तटीय रक्षक - लेख - मंजरी "निधि"
यह पृथ्वी भी बड़ी अनोखी है। इसमें जीवन को बनाए रखने की क्षमता है। यहाँ तरह तरह के वन हैं परन्तु मैंग्रोव वन एक अनोखे वन हैं। जब हम पर्य…
हर शज़र ये कहता है - ग़ज़ल - मनजीत भोला
हर शजर ये कहता है तख़्तियाँ हमारी थी। ये क़लम ये काग़ज़ सब ज़िंदगियाँ हमारी थी।। आज जो महकता है आपका ग़ुसलख़ाना, फूल कल हमारे थे तितलियाँ हमा…
परिवर्तन - कविता - बोधिसत्व कस्तूरिया
मैं पीपल का प्रतिष्ठित पुराना पेड़। प्रतिवर्ष पीत परिधानों को पलटते पलटते प्रियदर्शनी प्रेयसियों को प्रिय हो गया।। परिक्रमा पूर्णकर प्…
वृक्ष संरक्षण - कविता - राम प्रसाद आर्य
वृक्ष से मिलती हवा है साँस लेने के लिए हमको सदा। मधुर रसमय फल व शीतल छाँव, थक जायें यदा।। वृक्ष देते जल हमें, ईंधन जलाऊ, इमारत के का…
पेड़ हैं धरती का सिंगार - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
ये पेड़ हैं धरती का सिंगार । इनको मत काटो मेरे यार ।। ये देते प्राण वायु , और बढ़ाते सबकी आयु , ये हैं जीवन का आधार । इनको मत का…
प्रेम वृक्ष - क्षणिकाएँ - रमेश धोरावत
(१) कब हरा रहा प्रेम वृक्ष..? जिसमें "समर्पण" की जड़ें नहीं होती। (२) कब फ़ूटे प्रेम वृक्ष के "कोंपल" ? जिसको प्र…
पेड़ - कविता - मास्टर भोमाराम बोस
पेड़ हमारे जीवन दाता, पेड़ों से होती बरसात। शीत ताप स्वयं सहते, हमें ठंडी हवा देते। फूल फलों से लदे पेड़, भूखे को भोजन देते पेड़। पक्षियों…
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