मत काटो पेड़ भाई - गीत - रमाकांत सोनी

कैसी विडंबना हो रही है,
पेड़ों की छटा खो रही है। 
वृक्ष विहिन वन कर दिए,  
चेतना मनुज की सो रही है।

निज स्वार्थ दोहन कर डाला, 
मचा प्राणवायु बिन हाहाकार।
काट काट पेड़ मानव ने, 
ख़ुद जीना किया दुश्वार।

जीव जंतु स्वपन सा देखें, 
वृक्ष आसरा और संसार।
सूनी गलियाँ सड़के सूनी,  
मिले प्राणवायु सुने पुकार।

बे-ज़ुबान तलाश कर रहे, 
अपने ठौर ठिकाने को।
कहीं चिड़िया का घोसला, 
बंदर उधम मचाने को।

पंछी का मात्र घोंसला ही, 
महलों से कम नहीं भाई।
बंदर बिल्ली भालू सबको,
वृक्षों बिन दिक्कत आई।

प्राणों की परवाह गर मानव, 
पेड़ों से उतना प्यार करो। 
प्राणवायु देने वाले तरूवर,
वृक्षारोपण स्वीकार करो।

निज सुख की चाहत में, 
मत छीनो सुख औरों का। 
खिलने दो फूल कलियों को,
मधुबन में भ्रमर भोरों का।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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