बस बे-हिसाब - कविता - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"

तुम काट रहे पेड़ों को क्यों,
जो तुम्हें प्राणवायु देते।
नहीं स्वार्थ कोई, निस्वार्थ भाव,
बस बे-हिसाब आयु देते।।

तुमने देखा भी सूरज को,
गुस्से में तीव्र तपा देता।
तब पेड़ तुम्हारी ख़िदमत में,
दे छाया तुम्हें बचा लेता।।

फल के बनने से पकने तक,
की ज़िम्मेदारी लेता है।
मीठे रस से भरे हुए,
ख़ुद त्याग तुम्हें दे देता है।।

इन पौधों की औषधियों से,
हर रोगी का रोग हरण होता।
बे-घर पंछी जंतु जीवो,
का सुंदर सा ये घर होता।।

मिट्टी को सोना कर जाते,
तुम लोगों की खुशियों के लिए।
सूखे में वर्षा करवाते,
ये पेड़ बिना कोई शुल्क लिए।।

तुम भूल गए इसकी लकड़ी
से खेल कई खेला करते।
बचपन में इसकी शाखा पर,
रस्सी को बाँध झूला करते।।

हर वृक्ष त्याग बलिदान करे,
बदले में तुम क्या देते हो?
बस बे-हिसाब, बस बे-हिसाब,
तुम इससे हरदम लेते हो।।

देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन" - महोबा (उत्तर प्रदेश)

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