प्राकृतिक तटीय रक्षक - लेख - मंजरी "निधि"

यह पृथ्वी भी बड़ी अनोखी है। इसमें जीवन को बनाए रखने की क्षमता है। यहाँ तरह तरह के वन हैं परन्तु मैंग्रोव वन एक अनोखे वन हैं। जब हम पर्यावरण शब्द सुनते हैं तब हमारे दिमाग में पेड़, झाड़ियाँ, बगीचे, नदी, झील, हवा आदि आते हैं। पर क्या आपको मालूम है कि मैंग्रोव वन हमारे कुदरती तटीय रक्षक होते हैं? जी हाँ। पर ये मैंग्रोव वन क्या होते हैं? ये ऐसे वृक्ष हैं जो खारे पानी, अर्ध खारे पानी या उस जगह जहाँ मीठे और खारे पानी का मेल हो और जहाँ नमी भी हो और गर्मी भी हो वहाँ उगते हैं।

ये पर्यावरण के लिये अति आवश्यक होते हैं। ये इसलिए आवश्यक हैं क्यूँकि ये तटों को स्थिरता देते हैं। ये समुद्र एवं धरती के बीच उभय प्रतिरोधी बन खड़े होते हैं। ये समुद्र में आई प्राकृतिक आपदा से तटों की रक्षा करते हैं। इनकी शाखाए सूर्य की तेज किरणों व पैराबेंगनी किरणों से बचाती हैं। ये मछली उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि ये तटों पर नहीं होंगे तो मछलियाँ भी नहीं होंगी। ये अनेक जीवों का भोजन स्त्रोत भी होते हैं। ये पानी के अंदर एक तरह का जाल बनाते हैं जिससे समुद्र का पानी साफ रहता है और पोष्टिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। इनमें भारी धातु तत्वों को पानी से सोख कर रोकने की शक्ति होती है। यही कारण है कि ये तटीय क्षेत्रों में भारी धातुओं से होने वाले प्रदूषण को कम करते हैं। इनकी जड़ों में समुद्री शैवाल, समुद्री घास अच्छे से पनपती है। ये वातावरण से कार्बन डाइ ऑक्साइड को प्रकाश संस्लेषण से घटाते हैं। इनकी जड़ें मिट्टी के कटाव को कम करती हैं। ये मिट्टी को पुनर्जीवित करते हैं और अपनी जड़ों से मिट्टी को बाँधे रखते हैं। इनकी जड़ें मलबे को जमने में सहायक होती हैं। ये नदियों में बहकर आई गंदगी को तटों पर ही रोक देते हैं। ये जलचर, नभचर, उभयचर व स्तनधारियों को सुरक्षा और निवास स्थान प्रदान करते हैं।

इन वृक्षों के बीज मातृवृक्ष के ऊपर ही अंकुरित होते हैं। समुद्रों एवं महाद्वीपों की लहरों के प्रचंड थपेड़ों से ये अंकुरित बीज मातृ वृक्ष से अलग होकर लहरों के साथ बहने लगते हैं। ज़मीन देखकर ये वहीं अपनी जड़ें जमा लेते हैं। इसी कारण से इन्हें जरायुज भी कहा जाता है। जरायुज याने सजीव संतान उत्प्न्न करने वाला। इनकी जड़ों एवं पत्तियों पर ख़ास तरह की क्षार ग्रंथियाँ होती हैं जिससे इनके अंदर क्षार इकठ्ठा नहीं होता। ये क्षार पानी में गिरता जाता है। बारिश का पानी इसे अपने साथ बहा ले जाता है। शैवाल के कारण इनको भरपूर ऑक्सीजन नहीं मिलती इसीलिए इनकी विशिष्ट श्वसन जड़ें ज़मीन फोड़कर निकलती हैं। ये ऑक्सीजन सोखकर ज़मीन के नींचे की जड़ों को पहुँचाती हैं और वृक्षों को टेका भी देतीं हैं। इनकी जड़ें खोकली होने से जल्दी खराब हों जातीं हैं। इस कारण इन पेड़ों के नीचे खूबसारे पत्तों का कचरा इकठ्ठा हो जाता हैं। ये कचरा इनकी जड़ों को बाँधे रखता है और इस तरह ये ज़मीन का रक्षण समुद्र से करते है। यदि ये कुदरती तटरक्षक ना होते तो समुद्र धीरे धीरे ज़मीन पर अपना आधिपत्य जमा लेता। मैंग्रोव वन हमारे भारत मे बंगाल की खाड़ी, अरबसागर और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। सुंदर बन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन का क्षेत्र है।

इनको बचाए रखना बहुत ज़रूरी है क्यूँकि ये स्वयं में प्रकृति द्वारा स्थापित पर्यावरण सुरक्षा के अंग हैं। इनसे शाकाहारी जीवों को खाना मिलता है। इनकी लकड़ी खाना बनाने में काम आती है। इनकी वनस्पतियों से दवाइयाँ बनतीं हैं। इनका उपयोग प्लास्टिक, स्याही आदि उद्योगों में किया जाता है। ये स्थानीय जलवायु संतुलन एवं जीवन क्रियाशीलता बनाए रखने में बहुत मददगार साबित होते हैं। ये आत्मनिर्भर होते हैं। इनके किसी भी काम के लिए मनुष्य को किसी भी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं उठाना पड़ता। इनकी कटाई पर रोक लगाना अतिआवश्यक है। इनको नाश कर विकास नहीं करना है।

अंत में मैं इतना ही कहूँगी कि इन प्राकृतिक तटरक्षकों की रक्षा का जिम्मा हम सब जागरूक नागरिकों को उठाना चाहिए जिससे समुद्र किनारे की उपजाऊ ज़मीन को बंजर होने से बचाया जा सके।

मंजरी "निधि" - बड़ोदा (गुजरात)

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