आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ,
पहले इसे बचाने की क़सम खाएँ।
पेड़ कभी न काटे जाएँ,
गर स्वार्थी मानव इंसान कभी बन पाएँ।
परिवेश में पेड़-पौधे पशु-पक्षी
और जन-मानस सब एक हैं,
फिर क्यों नहीं करते प्रेम सभी को
और क्यों नहीं बनते नेक हैं।
हम लोग अपनी और अपने परिवार
की देखभाल तो कर लेते हैं,
पर कभी हमारे परिवेश की सोच न पाते हैं।
आज बाग़ देखने को नहीं मिलते,
हरियाली सुख से वंचित रह जाते हैं।
आख़िर हम पेड़ क्यों नहीं लगाते हैं,
जबकि पेड़ ही हमें फल, फूल, सब्जी,
यहाँ तक कि हमें प्राणवायु ऑक्सीजन,
छाँव भरा सुकून इतना सब कुछ तो देते हैं।
पशु पक्षियों को मार काट कर क्रूर मानव
घोर कलियुग परिभाषित करते हैं,
अब हाय कोरोना हाय कोरोना
तौबा तौबा क्यों करते हैं।
सज्जन बनकर इंसान बनो,
प्रकृति से निश्चल प्यार करो।
क्या कुछ नहीं देती प्रकृति हमको
पर कभी हमसे है क्या लेती,
सदा ही देती सदा ही देती।
अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)