मैं पीपल का
प्रतिष्ठित पुराना पेड़।
प्रतिवर्ष पीत परिधानों को पलटते पलटते
प्रियदर्शनी प्रेयसियों को प्रिय हो गया।।
परिक्रमा पूर्णकर प्रज्जवलित करती हैं दीपक
क्योंकि उन्हें मेरे ऊपर
ब्रह्मवास का भ्रम हो गया।।
पुण्य प्राप्ति के पागलो-
पलायन करो पीछा छोड़ो!
पर कोई नही सुनता
मेरे ब्रह्म की चीख - कि मैं अन्दर से खोखला हो गया।।
बोधिसत्व कस्तूरिया - आगरा (उत्तर प्रदेश)