संदेश
शिक्षा - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
शिक्षा एक आधार अभाव में सब निराधार, शिक्षा सत्य की आशा बिना इसके अधूरी जीवन की परिभाषा, शिक्षा का मूल्य मानो सब ही समझे फिर भी आज क…
आशीर्वाद - एकांकी - ईशांत त्रिपाठी
मयंक कुछेक दिन की छुट्टी मिलते ही अपने घर लौट रहा था। सरकारी कारणों से बस वाले उस समय अनशन पर जमे थे। चूँकि उसका सफ़र हमेशा बस के माध्य…
मन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
मन चंचल है तुम ये जानो, मन की शक्ति को पहचानो। मन की गति का अंत नहीं है, ये तुम अपने मन से जानो॥ मन की भाषा समझ सको तो, मन से उसक…
सीख गया हूँ मैं - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ तो पीर पराई लेकर चलना सीख गया हूँ मैं, ज़माने की अनेक रुसवाई लेकर चलना सीख गया हूँ मैं। तुम जान सके थे न जानोगे, बस सब कुछ झूठा मान…
बिन बुलाया मेहमान - कहानी - आशीष कुमार
वह आता है। रोज़ आता है। बिन बुलाए आता है। वह जो मेरा कुछ भी नहीं लगता पर मेरा बहुत कुछ है। उसे देखे बिना मैं नहीं रह सकता। वह यह बात जा…
जीवन धारा - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
हर्ष उमंग ख़ुशियों की लहरें बहती जीवन धारा, मेहनत लगन हौसला धरकर पाते तभी किनारा। भावों की पावन गंगा है मोती लुटाते प्यार के, पत्थर …
लफ़्ज़ों के फूलें - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
लफ़्ज़ों के फूलें मनभावन, आनंद सकल सुख देता है। नव प्रभात अरुणिम मुस्कानें, मधुरिम मिठास दे जाता है। लफ़्ज़ों का रस अनमोल सुखद, संत…
देखिए यूँ ना अब दग़ा कीजे - ग़ज़ल - करुणा कलिका
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 देखिए यूँ ना अब दग़ा कीजे, ख़ुद की नज़रों से ख़ुद वफ़ा कीजे। चाहती हूँ तेरी ग़ज़ल …
गुरु ऋण मुझ पर है - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
मात पिता है, मेरे जन्मदाता, बाल जीवन आपने सँवारा। प्रकाश पुंज ज्ञानो संग पाऊँ, कर्त्तव्य सशक्त, सुदृढ़ किनारा। दीपक सा जलकर, मुझे द…
गुरु सृष्टि का वरदान - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
गुरु सृष्टि का सबसे सुंदर वरदान है, बिना गुरु के कहाँ किसी की पहचान है। जान कर, जो न जान पाए, 'सृजन' की नज़रों में वे नादान …
कुंभकार : अध्यापक - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन' | शिक्षक दिवस पर कविता
गीली मिट्टी को गढ़-गढ़ कर, देते बर्तन सा बृहदाकार। अनुपम है योगदान तेरा, है नमस्कार हे कुंभकार। आगे चल कर कोई घड़ा बने, प्याला प्…
गुरु - कविता - अर्चना मिश्रा
गुरु वो हैं जो ग़ुरूर से दूर हैं, हो मुश्किल कितना भी रास्ता देते हल ज़रूर हैं। जो भी मेरी लेखनी की चाल हैं, सब गुरु का ही तो कमाल है…
शिक्षक गढ़ता नव परिवेश - कविता - द्रौपदी साहू
शिक्षक से चलता है देश, शिक्षक गढ़ता नव परिवेश। ज्ञानपुंज से हरता तम क्लेश, शिक्षक ब्रह्मा, विष्णु, महेश॥ नि:स्वार्थ सेवा भाव रखता, बन…
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - कविता - राघवेंद्र सिंह | शिक्षक दिवस विशेष कविता
धन्य-धन्य वह तिरुत्तनी और, धन्य हुआ वह तिरुपति। जन्मीं जहाँ विलक्षण प्रतिभा, जिसे पवन सी मिली गति। वेदों और उपनिषदों से ही, जुड़ी रही …
शिक्षक - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'
ज्ञान के साथ मान बढ़ाए शिक्षक का श्रमदान है। हम सब करते आए ऐसे शिक्षक का सम्मान है। उनके हौसले हिमालय से गहराई सागर समान है। एकलव्य को…
गुरु - कविता - गोकुल कोठारी
सोचो, उसके बिना कैसी होती धरा, अज्ञान की एक गहन कंदरा। मैं भटकता इस तिमिर में कहाँ, जो बनकर उजाला वो आता नहीं, मैं खो जाता इन अँधेरों …
गुरु वंदना - कविता - आर॰ सी॰ यादव
हे ईश तुल्य! हे पूज्य गुरु! तम हर, प्रकाशमय जीवन कर दे। प्रज्ञा प्रखर, निर्मल पावन मन, ख़ुशियों से घर-आँगन भर दे॥ बुद्धि विवेक प्रखर हो…
तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं - कविता - परमानन्द कुमार राय
तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं, स्वयं में कविता, कहानी व उपन्यास भी सँजोती है, वर्तमान, भूत और भविष्यत की जीने की अमर बैसाखी सी होती है। …
काश! मैं छोटी होती - कविता - अंजली शर्मा
काश! मैं छोटी होती, न कोई दिक्कत, न कोई परेशानी होती। काश! मैं छोटी होती, न वर्तमान का संघर्ष, न भविष्य की चिंता होती। काश! मैं छोटी ह…
बादल मगन हो गए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बरसता पानी ख़ूब, बादल मगन हो गए। हैं कर रहीं लहरें उत्पात। पावस की हुई बहुत बिसात॥ उजड़ जाए है ऊब, बादल मगन हो गए। धरा हो गई पानी-पानी।…
मेहनतकशों की पुकार - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे। रूठ जाए मेघा तो रुठ जाने देना डूब जाएँ तारे तो डूब जाने देना बूँद से …
अपनापन अपना गुम हो जाना ठीक नहीं - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 22 22 अपनापन अपना गुम हो जाना ठीक नहीं, बेमतलब हरदम पाँव फँसाना ठी…
संस्कार - कविता - अपराजितापरम
आज रो रही हो क्यों तुम? सहनशीलता और मर्यादा का पाठ तो तुमने मुझे पढ़ाया था। बचपन में जब भाई ने मुझको धक्का मारा था, तुमने उसे पुचकार क…
कवि होना फिर व्यर्थ है - कविता - रमाकान्त चौधरी
लिख न सके यदि दर्द किसी का, कवि होना फिर व्यर्थ है। दर्द उजालों को भी होते, पत्थर को भी आँसू आते। धूप भी जलती ख़ुद की तपन से, भीगे स…
ओ नभ के मंडराते बादल - कविता - आशीष कुमार
ओ नभ के मंडराते बादल! तनिक ठहर तनिक ठहर। अभी-अभी तो आया है तू, विशाल गगन पर छाया है तू। लौट ना जाना तुम अपने घर, नई नवेली दुल्हन सी शर…