तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं - कविता - परमानन्द कुमार राय

तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं,
स्वयं में कविता, कहानी व उपन्यास भी सँजोती है,
वर्तमान, भूत और भविष्यत की 
जीने की अमर बैसाखी सी होती है।

तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं,
भूली बिसरी कुछ याद दिलाती है,
कुछ खट्टी तो कुछ मीठी याद दिलाती है,
कुछ ख़ुशियों के पल दे जाती है,
तो कुछ ग़म में आँखें नम कर जाती है।

तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं,
सुखद स्वप्न देखे थे कैसे-कैसे,
वो वक्त आज भी मैं भूला नहीं,
भूलने की हर कोशिश की
पर तस्वीरों ने विस्मृत होने न दिया,
ये वक्त-वक्त की बात है, फिर भी
वक्त ने भूलने भी न दिया।

तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं,
सब अपने हैं, बहुत ख़ास हैं,
पर वक्त ने कुछ को पास रखा,
कुछ को क़रीब न रहने दिया,
ये अलग बात है कि हमें भी कभी साथ मिला सबका,
तो अब अलग होने का भी मौजूदा एहसास मिल गया।

तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं,
अपनी दामन को ऊँचाई देने के  सिलसिले में
अक्सर मैं अपने ही गिरेबान में गिरते चला गया,
आज मुड़कर देखता हूँ पीछे तो कमबख़्त
अपना जीवन सोच समझ कर जीने में बीतते चला गया,
ये जीवन है साहेब, पानी की धारा की तरह आहिस्ता-आहिस्ता बहते चला गया,
'परमानन्द' की खोज में आनंद भी 
आहिस्ता-आहिस्ता मेरे जीवन के परिधि से दूर होते चला गया।

परमानंद कुमार राय - अंधराठाढी, मधुबनी (बिहार)

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