गुरु वंदना - कविता - आर॰ सी॰ यादव

हे ईश तुल्य! हे पूज्य गुरु!
तम हर, प्रकाशमय जीवन कर दे।
प्रज्ञा प्रखर, निर्मल पावन मन,
ख़ुशियों से घर-आँगन भर दे॥

बुद्धि विवेक प्रखर हो मेरा,
शुचित हृदय तन निर्मल कर दे।
वाणी मधुर, कर्म हो गतिमय,
मन दर्पण सा उज्ज्वल कर दे॥

परहित धर्म भरा हो मन में,
सद्गुण संचित श्रेष्ठ जीवन हो।
ज्ञान का दीप जलाएँ पथ में,
दृढ़ निश्चय अटल यह प्रण हो॥

कर्म प्रधान ध्येय हो मन में,
जीवन का उद्देश्य नियत हो।
छल-प्रपंच दूर हो मन से,
धन ऐश्वर्य लालसा रहित हो॥

पग सनमारग, मन अनुरागी,
परमारथ हो लक्ष्य हमारा।
जन-जन की पीड़ा हरना ही,
नेक नियत संकल्प हमारा॥

कर्म रति जीवन अपना कर,
दीन दुखी की पीड़ा हर लें।
पथ में आई बाधाओं को,
पल भर में हर लें॥

अज्ञानता का छंटे कुहासा,
दिव्य ज्ञान की ज्योति बिखेर दे।
उजियारा फैले जीवन में,
सौभाग्य लेखनी से उकेर दे॥

हे सदगुरु! हे मनुज श्रेष्ठ!
शौर्य, विभूति, निर्भय वर दे।
तिमिर नाश कर, पथ आलोकित कर,
जीवन को ज्योतिर्मय कर दे॥

आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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