जीवन धारा - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'

हर्ष उमंग ख़ुशियों की लहरें बहती जीवन धारा, 
मेहनत लगन हौसला धरकर पाते तभी किनारा। 

भावों की पावन गंगा है मोती लुटाते प्यार के, 
पत्थर को भगवान मानते सुंदर वो संस्कार थे। 

इक दूजे पे जान लुटाते सद्भावों की पावन धारा, 
क्या ज़माना था सुहाना बहती प्रेम की रसधारा। 

पथिक पथिक हमसफ़र हो तय सारा सफ़र करते, 
सुख दुख में बन सहारा दुख तकलीफ़ें सारी हरते। 

एकता की डोर घर में ख़ुशहाली दौड़ी आती थी, 
दुलार पा अनमोल प्यारा आँखें चमक जाती थी। 

त्याग समर्पण सहयोग भरी भावना घट में होती, 
सत्य सादगी साहस से बुलंदियाँ घर घर में होती। 

शील संस्कार भरकर सम्मान बड़ों का होता था, 
भाग्य के तारे चमकते आलस कही पे रोता था। 

आस्था विश्वास दिलों में अनुराग उमड़ता सारा, 
जीवन में आनंद बरसता लहराती जीवन धारा। 

रमाकान्त सोनी 'सुदर्शन' - झुंझुनू (राजस्थान)

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