शिक्षक गढ़ता नव परिवेश - कविता - द्रौपदी साहू

शिक्षक से चलता है देश, शिक्षक गढ़ता नव परिवेश।
ज्ञानपुंज से हरता तम क्लेश, शिक्षक ब्रह्मा, विष्णु, महेश॥ 

नि:स्वार्थ सेवा भाव रखता, बनता सबका पथ प्रदर्शक। 
दया, प्रेम, सहानुभूति भरता, है वह सच्चा मार्गदर्शक॥ 

संस्कारी, गुणवान और चरित्रवान बनाता है। 
अक्षर से अंतरिक्ष तक शिक्षक ही पहुँचाता है॥ 

डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, पायलट, कोई बनता जिलाधीश। 
पंडित, सैनिक, नेता, मंत्री, कोई बनता न्यायाधीश॥ 

छल, दंभ, द्वेष भाव मिटाता, सत्य धर्म, समभाव सिखाता। 
मानवता का पाठ पढ़ाता, देश को प्रगति शील बनाता।। 

कौन छली है, कौन हितैषी, कौन हमें है भरमाता। 
कौन है सच्चा, कौन है झूठा, ये परख शिक्षक सिखलाता॥ 

शून्य से अनंत तक, अज्ञान से ज्ञान तक। 
शिक्षक ही सर्वस्व है, धरती से आसमान तक॥ 

हर क़दम पर साथ निभाता, शिक्षक का उपदेश। 
शिक्षक से दुनिया सारी, शिक्षक से चलता है देश॥ 

द्रौपदी साहू - छुरी कला, कोरबा (छत्तीसगढ़)

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