काश! मैं छोटी होती,
न कोई दिक्कत, न कोई परेशानी होती।
काश! मैं छोटी होती,
न वर्तमान का संघर्ष, न भविष्य की चिंता होती।
काश! मैं छोटी होती।
न कोई बात मुझमें घर कर जाती, न मैं किसी की बुरी होती,
काश! मैं छोटी होती।
जब न कोई मन में शंका होती, न ही इतनी बेचैनी होती,
काश! मैं छोटी होती।
जब न ही इतनी समस्याएँ होती, न इन्हें सुलझाने की चिंता होती,
काश! मैं छोटी होती।
जब न पिताजी को मेरी सुरक्षा की इतनी फ़िक्र होती,
तब न मुझ पर इतनी पाबंदियाँ लगती,
काश! मैं छोटी होती।
न जब समाज क्या कहेगा की फ़िक्र होती,
अपने छोटे-से जीवन में ख़ुश रहती,
काश! मैं छोटी होती।
काश! वो मेरा प्यारा-सा बचपन दुबारा लौट आए,
जिसे मैनें ऐसे ही बीता दिया।
अन्जली शर्मा - दिल्ली