कवि होना फिर व्यर्थ है - कविता - रमाकान्त चौधरी

लिख न सके यदि दर्द किसी का, 
कवि होना फिर व्यर्थ है। 

दर्द उजालों को भी होते,
पत्थर को भी आँसू आते। 
धूप भी जलती ख़ुद की तपन से,
भीगे सावन अश्रु बहाते।
पर जीना सब को पड़ता है,
जीवन जीना शर्त है। 
लिख न सके यदि दर्द किसी का,
कवि होना फिर व्यर्थ है। 

बंजर धरती दुखमय होती,
फ़सल नहीं दे पाती है।
अन्न उगाती जो धरती,
वह बेहद कष्ट उठाती है।
सबके अपने-अपने दुख हैं,
सबका अपना दर्द है।
लिख न सके यदि दर्द किसी का,
कवि होना फिर व्यर्थ है। 

प्रीत निभाने वाले जोड़े,
अक्सर मारे जाते हैं।
जो नहीं निभाते रीत प्रीत की,
वो चैन से ना जी पाते हैं। 
पहचान बनी ना सदकर्मों से,
तो जीवन जीना व्यर्थ है। 
लिख न सके यदि दर्द किसी का,
कवि होना फिर व्यर्थ है।
 
हर हाल में फूल सुरक्षित हो,
यह शूल की ज़िम्मेदारी है।
यदि शूल फूल को घाव करे
तो फिर तो यह ग़द्दारी है।
आँसू खुद ही तड़प के रोए,
तब मानवता का अर्थ है।
लिख न सके यदि दर्द किसी का,
कवि होना फिर व्यर्थ है।

रमाकांत चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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