मन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव

मन चंचल है तुम ये जानो, 
मन की शक्ति को पहचानो। 
मन की गति का अंत नहीं है, 
ये तुम अपने मन से जानो॥ 

मन की भाषा समझ सको तो, 
मन से उसका अर्थ निकालो। 
मन में किसके क्या चल रहा है, 
मन से बूझ सको तो जानो॥ 

मन से अपने बन जाते हैं, 
मन से पराए हो जाते हैं। 
मन से नफ़रत दूर भगाएँ, 
मन से रिश्तों को अपनाएँ॥ 

मन को लगी चोट के कारण, 
मन से छवि फिर मिट जाती है। 
मन को जिसने दुखी किया है, 
मन से नफ़रत हो जाती है॥ 

मन में आशा होने पर ही, 
मन चाहा फल मिल जाता है। 
मन में है विश्वास तुम्हारे, 
मन से फिर क्यों घबराता है॥ 

मन चंचल रहता जीवन भर, 
इस बात को तुम अब जानो। 
मन जिस दिन निश्चल हो जाए, 
जीवन स्थिर हो गया जानो॥ 

मन से धर्म, आस्था पूजा, 
इससे बड़ा कर्म नहीं दूजा। 
मन की शक्ति बढ़ जाती है, 
सच्चे मन से करें जो पूजा॥ 

मन दुखी है जीवन में तो, 
अंधकार मय जीवन जानो। 
मन सुखी है जीवन में तो, 
जीवन सफल तुम्हारा जानो॥ 

मन से माया मोह त्याग कर, 
शांत मन से ध्यान लगाओ। 
मन से प्रभु को याद करो तो, 
मन में प्रभु का दर्शन पाओ॥ 

अखिलेश श्रीवास्तव - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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