मेहनतकशों की पुकार - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल

भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

रूठ जाए मेघा तो रुठ जाने देना
डूब जाएँ तारे तो डूब जाने देना
बूँद से पसीने की खेत सींच देना
घर-घर में आशा के दीप लेस देना।
अरे, आदमी रहे ना रहे भूखी गैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

पाँव थम न जाएँ तू नाचते ही रहना
प्यार के सफों को तू बाँचते ही रहना
आँख लग ना जाए तू जागते ही रहना
हैं घात में लुटेरे तू ताकते ही रहना।
मँझधार में है नैया, संभालना खिवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

देश की ये धरती बलिदान माँगती है
माटी आज श्रम के वरदान माँगती है
जो शीश को उठा दे वो शान माँगती है
बेटे से माँ का अभिमान माँगती है।
अरे सेर हो जो दूश्मन हो, जाना तू सवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

हिंदू औ' मुसलमाँ की तोड़ना दीवारें
सूबे और भाषा की पाटना दरारें
नफ़रत के मन में बालना अँगारे
मुरझाए गुलशन में बाँटना बहारें।
पतझार बन ना जाना, बन जाना पुरवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

मंज़िल है दूर साथी तुझको है पास जाना
रोकेंगे के राह पर्वत तू बढ़ के लाँघ जाना
आँधी तूफ़ान आएँ हिम्मत ना हार जाना
चलना तेरी कहानी चलना तेरा तराना।
आँधी हैं तेरी बहना, तूफ़ान तेरे भैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ भैया रे।

श्याम सुन्दर अग्रवाल - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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