आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)
ओ नभ के मंडराते बादल - कविता - आशीष कुमार
शुक्रवार, सितंबर 02, 2022
ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।
अभी-अभी तो आया है तू,
विशाल गगन पर छाया है तू।
लौट ना जाना तुम अपने घर,
नई नवेली दुल्हन सी शरमा कर।
ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।
मैं भी एक मयूरा होता,
देख कर तुमको बावला होता।
पंख फैलाकर स्वागत करता,
तुम्हें रिझाता नाच-नाच कर।
ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।
मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी,
तेरे बिन हैं नदियाँ भी प्यासी।
बरस जरा तू थम-थम कर,
नन्हीं बूँदों की लड़ियाँ सी बनकर।
ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।
मैं भी नटखट बच्चा बनकर,
ख़ुश हो जाता काग़ज़ की कश्ती तैरा कर।
बहते पानी में कूद-फाँद कर,
पपीहे-कोयल की बोली में गाकर।
ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।
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