ओ नभ के मंडराते बादल - कविता - आशीष कुमार

ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।

अभी-अभी तो आया है तू,
विशाल गगन पर छाया है तू।
लौट ना जाना तुम अपने घर,
नई नवेली दुल्हन सी शरमा कर।

ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।

मैं भी एक मयूरा होता,
देख कर तुमको बावला होता।
पंख फैलाकर स्वागत करता,
तुम्हें रिझाता नाच-नाच कर।

ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।

मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी,
तेरे बिन हैं नदियाँ भी प्यासी।
बरस जरा तू थम-थम कर,
नन्हीं बूँदों की लड़ियाँ सी बनकर।

ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।

मैं भी नटखट बच्चा बनकर,
ख़ुश हो जाता काग़ज़ की कश्ती तैरा कर।
बहते पानी में कूद-फाँद कर,
पपीहे-कोयल की बोली में गाकर।

ओ नभ के मंडराते बादल!
तनिक ठहर तनिक ठहर।

आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)

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