संदेश
हम भारत के मूलनिवासी - कविता - रमाकान्त चौधरी
हम भारत के मूलनिवासी, भारत मेरी शान। इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान। जाने कितने खनिज छिपे हैं इसकी धरती में, चरण पखारे सागर…
बिखरते रिश्ते - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
ख़ुदगर्ज़ी के आलम में, सारे रिश्ते बिखर गए। धन दौलत के झूठे क़िस्से, वो जाने किधर गए।। प्यार की दौलत ही सच थी, एक दुनिया में मगर। आदमी ने…
दीपक नया जलाना है - ताटंक छंद - डॉ॰ आदेश कुमार गुप्ता पंकज
अत्याचार बढ़ा धरती पर, शिव को हमें जगाना है। सत्य पड़ा ख़तरे में है अब, उस को हमें बचाना है।। समर भूमि में दुश्मन आया, उसको मार भगाना है।…
सौदागर - कविता - सीमा वर्णिका
चारों तरफ़ है ठगों का डेरा, अरे! सौदागर कहाँ का फेरा। मृगनयनी कंचन काया, सौंदर्य की अद्भुत माया, सम्मोहन बिखरा पाया। स्वर्ण सा दमके यहा…
दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
अरकान: फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ऊलु फ़ाइलातुन तक़ती: 222 222 121 2122 दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है, क्यूँ रंगत अब उस रंग-बार में नहीं है। …
किसान - कविता - काजल चौधरी
कृषि प्रधान देश हमारा, हमको जान से प्यारा है। देश की शान, देश का मान, हे कृषक तुम हो महान! बहाते पसीना दिन-रात हो, तुम हमारा अभिमान हो…
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें - गीत - दीपक राही
रहबर मुझे कहते हो तुम, भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2 मिले थे कभी अनजाने में, वो बात ना हुई फिर कभी, रहबर मुझे कहते हो तुम, भूलूँगा मैं …
बारिश की भयावहता - कविता - मिथलेश वर्मा
बारिश की भयावहता उनसे पूछो, जब वर्षा जम के बरसती है। घासों के छप्पर से बूँदें, टप-टप कर टपकती है। बारिश उतनी भी सुंदर नहीं होती, जितनी…
दान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
युगों युगों से चली आ रही दान की परंम्पराओं का समय के साथ बदलाव भी दिखा। देने से अधिक दिखाने का प्रचलन बढ़ा। थोड़ा देकर अधिक प्रचार कर रह…
जीवन उत्कर्ष - कविता - प्रतिभा नायक
भरी दोपहरी में छाँव का अर्श, काँटों के बीच फूलों का स्पर्श। अँधेरी रात में चन्द्रमा का दर्श, जीवन में संघर्ष जीवन उत्कर्ष। निरन्तर चलत…
ख़्वाहिशें - कविता - अर्चना कोहली
उच्छल जलधि तरंग सी ख़्वाहिशें, नहीं है इस पर कोई भी बंदिशें। जीवन-रंगमंच पर फैले इसके पंख, अधूरी होने पर न करें कोई रंजिशें।। अंतर्मन म…
कि बादल बहुत आज छाए हुए हैं - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
कि बादल बहुत आज छाए हुए हैं, गली गाँव जल में समाए हुए हैं। बतख मोर चातक पपीहा पखेरु, धमाचौकड़ी सब मचाए हुए हैं। खड़े नीम पीपल बकुल मौन…
यादें - कविता - रमाकांत सोनी
बड़ी सुहानी लगती यादें, प्रेम भरी मनभावन सी। उर उमंग हिलोरे लेती, झड़ी बरसते सावन सी। सुख-दुख के मेंघ मँडराए, यादें बस रह जाती है। घ…
बचपन - कविता - उर्मि
बचपन मेरा बचपन! कितना सुंदर और प्यारा बचपन। कब आया, कब गया सपनों सा मानस पटल पर रह गया। लौटकर आओ ना मेरा प्यारा सा बचपन। वह माँ और…
कह रहे हैं केशव सुनो कर्ण - कविता - राघवेंद्र सिंह
महाभारत में कृष्ण और कर्ण संवाद का परिदृश्य दिखाती कविता। जब शुरू हुआ विध्वंश युद्ध, धरती कांँपी हुआ काल क्रुद्ध। बजा बिगुल भीषण रण का…
क्षमता - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
शब्द ही सब कुछ है हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख, व्यथा-कथा है अव्यक्त हर झाँकी में छिपा, समीप जाने से पहले ही दूर क्षितिज से नई राह खुल जाती ह…
ऐ मेरे दिल सुनो - गीत - आकाश 'अगम'
ऐ मेरे दिल सुनो सिर्फ़ दिल ही रहो, एक आघात से यूँ क़हर मत बनो। जो गिरा कर सिखाती नहीं कुछ मुझे, एक आघात से वो डगर मत बनो।। लोग तो ग़लतिया…
गुरु - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
अनमोल अनुभव जुड़ जाते हैं, गहन अध्ययन एवं संप्रीति से। फिर वही विद्वता साक्षात्कार कराती है हमें, हमारे उज्जवल भविष्य व उन्नति से।। …
काँधे पर चढ़ी धूप - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
पशु-पक्षी और पेड़ों ने जीवन में कितने रंग भरे। है दिवस के काँधे पर चढ़ी धूप। होगा सागर सरिताओं का भूप।। चलते हुए समीर में देखो अलमस…
सरस्वती वंदना - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
माँ तेरे पैरों पर, शब्दों का फूल चढ़ाता हूँ। तेरे सम्मुख, अपनी लेखनी अर्पित करता हूँ। ह्रदय से मैं तुझे, नमन बार-बार करता हूँ। अपने अ…
गिरती दीवारें - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
गिरती दीवारें और भी बहुत कुछ गिरा लाती हैं अपने साथ, सिर्फ़ मिट्टी और रेत के कण नहीं, जल के बूँद और लोहा भी नहीं, बल्कि उन मज़दूरों का …
मजबूरी - कविता - समय सिंह जौल
अपने हाथ में डंडी लिए चुंबक उसमें बाँध लिए ढूँढ़ रहा कूड़े में टुकड़े लोहे के जैसे मछुआरा जाल बिछाकर पानी में छोड़ता जाल बनाकर फँस…
कुछ पल तेरे संग - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
कुछ पल तेरे संग बिताएँ, स्वप्निल दुनिया साथ रचाएँ। जिए साथ हम बन हमजोली, नवजीवन आलोक जगाएँ। अन्तर्मन अवसाद भुलाएँ, बिम्बाधर मुस्कान ख…
प्रकृति - कविता - भुवनेश नौडियाल
प्रकृति है, अद्भुत, अनोखी, सुंदरी न्यारी, निर्झर बहती नदिया सारी। जिसमें रहते जीव अनोखें, प्रकृति में ही रहते मोहे। मनमोहक है, रूप नि…