मेरी नानी - कविता - उमेश यादव
शनिवार, मई 18, 2024
कमर झुकी है हाथ में डंडा,
बड़ी सुहानी लगती हैं।
माँ की मम्मी, बड़ी सुंदरी,
मेरी नानी लगती हैं॥
बचपन की कुछ मीठी यादें,
अब भी मन हर्षाते हैं।
क़िस्से लोरी और कहानी,
प्यार भरी वो बातें हैं॥
दूध की छाली और मलाई,
कोही से खिलाती थी।
आँचल के सिक्के से नानी,
लेमनचूस बँटवाती थी।।
जबतक मैं ननिहाल में होता,
पुआ पकोड़ी रोज़ बनते थे।
मामा मामी का पण्डित मैं,
सेवाभगत ख़ूब करते थे।।
मेरे आँख में आँसू आए,
तो किसी की ख़ैर नहीं।
मनचाहा तुरंत मिलता था,
तनिक भी देर सवेर नहीं॥
राजकुमार बन जाता था मैं,
बच्चों पर धौंस जमाता था।
मिठाई का ज़्यादातर हिस्सा,
अकेले मैं खा जाता था॥
वो भी क्या ज़माना था तब,
नानी मुझे खिलाती थी।
नींद कहीं आ जाए तो फिर,
अपने गोद सुलाती थी॥
बिजली चालित पंखे न थे,
आँचल से हवा खिलातीं थीं।
बड़े सुकून से हम बच्चों को,
लोरी सुना सुलाती थीं॥
काश कभी वैसा पल आए,
स्वर्ग की नानी पास हों मेरे।
चरण छू आशीष लूँ नानी,
बड़े भोर में, सुबह सवेरे॥
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