प्रकृति - कविता - भुवनेश नौडियाल

प्रकृति है, 
अद्भुत, अनोखी, सुंदरी न्यारी,
निर्झर बहती नदिया सारी।
जिसमें रहते जीव अनोखें,
प्रकृति में ही रहते मोहे।
मनमोहक है, रूप निराला,
सूरज जैसा, है उजियारा।
धरा रूप को, तुमने निखारा, 
वर्षा का आँचल, है पसारा।
पुत्री धरा की, है ये प्यारी,
सबको ममता देती सारी।
जीवन ख़ुशियों से भर देती,
कभी अटखेलियाँ ये कर देती।
सखी है इसकी, चंचल वर्षा,
मात धरा आधारशिला।
सुता सुत वन बाग बगिया।
मन को करदे ताता थैंया।

भुवनेश नौडियाल - पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

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