रहबर मुझे कहते हो तुम,
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2
मिले थे कभी अनजाने में,
वो बात ना हुई फिर कभी,
रहबर मुझे कहते हो तुम,
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2
वह शाम भी, तो मेहरबाँ थी,
फिर भी हम मिले इस तरह,
मिल के भी ना मिले हो कहीं,
वो बात आज यक़ीन बन गई,
रहबर मुझे कहते हो तुम,
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2
संभाला था ख़ुद को भी मैंने,
फिर भी यह रात कटती नहीं,
तुम्हारे ना आने की ख़बर से,
वो प्यास कभी मिटती नहीं,
रहबर मुझे कहते हो तुम,
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2
इक तुम ही तो हो, सब कुछ मेरा,
कभी ना छूटे साथ तेरा,
चाहे कर देना बदनाम मुझे,
इस प्यार को कोई अंजाम देना,
रहबर मुझे कहते हो तुम,
भूलूँगा मैं कैसे तुम्हें...2
दीपक राही - जम्मू कश्मीर