ऐ मेरे दिल सुनो सिर्फ़ दिल ही रहो,
एक आघात से यूँ क़हर मत बनो।
जो गिरा कर सिखाती नहीं कुछ मुझे,
एक आघात से वो डगर मत बनो।।
लोग तो ग़लतियाँ भूलते ही नहीं,
क्योंकि अब तक नहीं मौत आई मेरी।
तन मरे इक दफ़ा, आत्मा है अमर,
किन्तु वचनों से तो आत्मा ही मरी।
चाहता हूँ नहीं दिल तुम्हें मारना,
इसलिए कह रहा हूँ अमर मत बनो।।
भर रखी है हवा मैंने कमरों में भी,
साँस होगी ख़तम, काम वो आएगी।
जानता हूँ ये मुमकिन नहीं है मग़र,
ज़िन्दगी बेफ़िकर हो गुज़र जाएगी।
देख लो पहले तालाब की ज़िंदगी,
एक दम से ही निर्झर, भँवर मत बनो।।
आकाश 'अगम' - मैनपुरी (उत्तरप्रदेश)