सौदागर - कविता - सीमा वर्णिका

चारों तरफ़ है ठगों का डेरा,
अरे! सौदागर कहाँ का फेरा।

मृगनयनी कंचन काया,
सौंदर्य की अद्भुत माया,
सम्मोहन बिखरा पाया।

स्वर्ण सा दमके यहाँ सवेरा,
अरे! सौदागर कहाँ का फेरा।

यह राह प्रेम नगर की,
पथरीले से डगर की,
नित परीक्षा सबर की।

आँखों के आगे पसरा अँधेरा,
अरे! सौदागर कहाँ का फेरा।

छलती मोहक मुस्कान,
सांसत में पड़ती जान,
संघर्ष का होता विधान।

इस राह पर दु:ख बहुतेरा,
अरे! सौदागर कहाँ का फेरा।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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