हम भारत के मूलनिवासी - कविता - रमाकान्त चौधरी

हम भारत के मूलनिवासी, भारत मेरी शान। 
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

जाने कितने खनिज छिपे हैं इसकी धरती में, 
चरण पखारे सागर दक्षिण पूरब पश्चिम में।
उत्तर में है खडा हिमालय अपना सीना तान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

यहाँ मस्तियाँ छाई रहती हर एक मौसम में,
पक्षी तक हैं कलरव करते इसकी चाहत में। 
और हवाएँ करती इसके गौरव का गुणगान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।
 
सारे जग को ख़ूब लुभाती काश्मीर की वादी, 
यूँ लगता कुदरत ने अद्भुत दुनिया यहीं बसा दी।
स्वर्ग यही है भारत का, ये भारत की  शान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

अंग्रेजों ने इस पर जब अपना अधिपत्य जमाया,
बच्चा बच्चा लड़ा देश का उनको मार भगाया।
फिर भीमराव ने दिया इसे सबसे बड़ा संविधान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

एक व्यक्ति का एक वोट है, ये सबको अधिकार,
जब चाहो तब बदल सकेगी, भारत की सरकार। 
जन्म से राजा कोई नही बस लोकतंत्र पहचान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

तीन रंग का राष्ट्र ध्वज जो आसमान तक लहरे,
कभी न झुकने पाए यह युगों युगों तक फहरे। 
ऊँचा इसका मान रहे, सदा रहे सम्मान,
इसकी रक्षा ख़ातिर मेरी जान भी है क़ुर्बान।

रमाकान्त चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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