बचपन - कविता - उर्मि

बचपन मेरा बचपन!
कितना सुंदर और प्यारा बचपन।
कब आया, कब गया
सपनों सा मानस पटल पर रह गया।
   
लौटकर आओ ना मेरा
प्यारा सा बचपन।
वह माँ और बाबूजी का
हाथ पकड़कर चलना,
रंगीन गब्बारों को देखकर मचलना,
वह हमउम्र बच्चों को देखकर खिलखिलाना, 
वह गिरना, वह लड़ना,
बताओ ना मेरा बचपन 
आओगे वापस मेरे बचपन?

छोटे-छोटे हाँथों से
तितलियों को पकड़ना,
न कोई फ़िक्र न कोई चिंता,
बस दुनिया की सुंदरता को
अपने आँखों के रंगीन तूलिका से आँकना,
बहुत याद आते हो बचपन!

आँखों से अश्रु धार बहते ही माँ-बाबूजी 
का दौड़े आना, वह दुलार करना, 
अपने गोद में उठा लेना,
वह उनका बहलाना,
दादी माँ की कहानियों का आनंद लेना,
सपनों की दुनिया में खो जाना,
आज की इस भीड़-भाड़ की दुनिया में 
सब कहीं खो गया है।
बचपन तुम वापस आओ ना!

वह थोड़ा रूठना, थोड़ा हठ करना
थोड़े से प्यार में बहल जाना,
वह न खाने से माँ का बहलाना,
वह माँ का प्यार से डाँटना,
बहुत याद करता है मन तुम्हें
मेरे प्यारे बचपन!

वह गुड़ियों के साथ खेलना,
उनको सजाना,
उनसे तोतली बोली में बोलना,
माँ की साड़ी पहनकर
नन्हें-नन्हें क़दमों से ताल देकर नाचना,
गुड़ियों की शादी रचाना,
वह मिट्टी से खेलना,
पानी के फुहारों में भीगना,
बाबूजी के कंधे पर चढ़ कर 
पर्वतों की सैर करना,
बाबूजी के घर से बाहर जाते ही 
उनसे उपहार लाने की ज़िद्द करना,
अब सब सपना सा लगता है।
तुम क्यों चले गए बचपन?
वापस आओ मेरे प्यारे बचपन!

याद आता है जब
पहली बार घर से बाहर
क़दम का रखना,
पहली बार स्कूल जाना,
अनजाने भय से डरना,
आँखों से अश्रु धार बहना,
वह माँ का आँचल पकड़कर रोना,
स्कूल ना जाने के बहाने बनाना।

अब सपना सा लगता है,
बचपन की यादें। 
मन को बहुत गुदगुदाती हैं, 
एक मीठी सी टीस दे जाती है।
कितने सपने बुने थे,
आज वह सपने कुछ पूरे हुए,
कुछ अधूरे ही रह गए,
बस मन बचपन में वापस जाना चाहता है,
काश मैं अपने बचपन को बुला पाती,
बचपन की यादें कभी हँसाती,
तो कभी थोड़ी रंगीन दुनिया में ले जातीं।
अब मन नहीं लगता
इस उलझनों भरी दुनिया में,
काश मैं अपने बचपन को बुला पाती,
काश वह हमारे साथ रहता,
मेरा प्यारा बचपन, मेरी मधुर स्मृति,
आह! बचपन, 
मेरा प्यारा बचपन!
                 
उर्मि - बैंगलोर (कर्नाटक)

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