ख़्वाहिशें - कविता - अर्चना कोहली

उच्छल जलधि तरंग सी ख़्वाहिशें,
नहीं है इस पर कोई भी बंदिशें।
जीवन-रंगमंच पर फैले इसके पंख,
अधूरी होने पर न करें कोई रंजिशें।।

अंतर्मन में अनंत ही ख़्वाहिशें होती हैं,
सतरंगी सपनों के सुंदर बीज बोती है। 
पर हरेक ख़्वाहिश रह जाती है अधूरी,
तक़दीर कहाँ बस में सभी के होती है।।

अंतिम साँस तक यही हमारे संग रहते,
संघर्ष से कभी निज ख़्वाब बिखरते।
तो कभी कठिन श्रम से जाती निखर,
जीवन में ख़ुशी के रंग यही तो भरते।।

दिल के मंदिर में हमने इसे सजाया है,
निज तक़दीर को इससे ही बनाया है।
सोते-जागते मैंने सतरंगी स्वप्न देखे,
नभ छूने का सुंदर सफ़र तय किया है।।

दिन-रात आत्म-मंथन हम करते रहते,
ख़्वाबों के सुंदर आगार दिन-रात बनते।
कभी मँझधार में फँस जाते नैया सम,
तो धैर्य से प्रयास करने से पा ही लेते।।

ख़्वाब पूरे करने को एक धरातल चाहिए,
मनोबल-साहस-सा सुंदर बंधन चाहिए।
लक्ष्य-भेदन का मार्ग चाहिए हमें अगर,
तो अर्जुन-सी एकाग्रता भी तो चाहिए।।

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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