क्षमता - कविता - गोपाल मोहन मिश्र

शब्द ही सब कुछ है
हर्ष-उल्लास,
सुख-दुःख, व्यथा-कथा
है अव्यक्त
हर झाँकी में छिपा,
समीप जाने से पहले ही
दूर क्षितिज से
नई राह खुल जाती है।
नए उत्साह के साथ
जैसे पंछी लौटता है बसेरे में...!

संभावनाओं की लम्बी जड़
सात समंदर पार
न जाने कहाँ है,
हर "मगर" का अस्तित्व रहता है भोर में,
सूरज, चन्दा, तारे, पर्वत, कीड़े, पतंग, केंचुए
सभी शब्द, शब्द होने पर भी
शब्द बनकर नहीं रहे...!

कोई उसे बिजली की रस्सी से बाँध देते हैं,
तो कहीं उसके लिए काग़ज़, कलम, स्याही, ख़र्च करते हैं,
हँसी, भय, दुःख, उड़ने, डूबने, चलने में समर्थ ये शब्द,
प्रकाश फैला देते हैं, धुन प्रसारित कर देते हैं,
सभी ने देखा
भावों में, संवेदनाओं में, रचनाधर्मिता में,
घटनाओं में, आस्वाद में।
यह संचरण क्षमता ही
शब्द का मुखर मौन है...!

गोपाल मोहन मिश्र - लहेरिया सराय, दरभंगा (बिहार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos