संदेश
बरसो मेघा प्यारे - कविता - रमाकांत सोनी
तपती रही दोपहरी जेठ की, आया आषाढ़ का महीना। धरा तपन से रही झूलसती, सबको आ रहा पसीना। कारे कजरारे बादल सारे, घिर कर बरसो मेघा प्यारे। क…
हमीं से दूर जाना चाहता है - ग़ज़ल - प्रशान्त "अरहत"
अरकान: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती: 1222 1222 122 हमीं से दूर जाना चाहता है। तभी वो पास आना चाहता है।। नई दुनिया बनाई है वहाँ पर, वही म…
अवतरण मुदित उनसठ वसन्त - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" जी के उनसठ वसन्तोत्सव पर गीत अवतरण मुदित उनसठ वसन्त, पथ कंटिल पीड, कहीं फूल खिले। मधुमास मुदि…
अब जाग उठो भारतवासी - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
अब जागो उठो हे भारतवासी! आँखें खोलो हे अभिलाषी! सपने पूरे करने को फिर नया सवेरा हुआ अभिलाषी! जो कष्ट सहे हैं जीवन में दर्पण वो देखो अ…
सूरज - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
दिनकर का मिलता है स्पर्श, धरती खिल खिल है जाती। आदित्य रश्मि की चादर से, अनुराग रवि का सतत पाती। सूरज की किरणें ये करतीं जग का जीवन है…
कर भला तो हो भला - कहानी - अंकुर सिंह
"क्या हुआ मोहन, इतने उदास क्यों हो? तुम तो इंटरव्यू के लिए गए थे, क्या हुआ तुम्हारी नौकरी का?" -जाड़े के दिनों में मोहन के म…
कभी नहीं मैं हारूँगी - कविता - प्रीति त्रिपाठी
कभी नहीं मैं हारूँगी माँ, मैं तेरी ही बेटी हूँ। चाहे मन उद्वेलित हो या जीवन यह रसहीन रहे, उड़ जाने को मन तरसे या गति से अपने क्षीण रहे,…
करूँ समर्पण तन मन भारत - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
करूँ समर्पण तन मन भारत, वन्दहुँ धरणी देश विजय हो। गाऊँ जन मन गान तिरंगा, एक राष्ट्र परिवेश उदय हो। लज्जा श्रद्धा प्रीति वतन बन, नारी…
वृद्धाश्रम में माँ को बेटे का इंतज़ार - कविता - डॉ. ललिता यादव
एक माँ जिसे उसका बेटा वृद्धाश्रम में हर रविवार मिलने आने की बात कहकर छोड़ गया है। माँ उसका इंतज़ार कर रही है, कविता के रूप में कहती है-…
वहम - कविता - दीपक राही
ज़हन में है वो मेरी, तो ज़हन में ही रहने दो, वास्तविकता में क्या रखा है, अगर वो वहम में है मेरी, तो वहम ही रहने दो। वहम था मेरे कि तुम…
सामने आके जो एहसान ने अँगड़ाई ली - ग़ज़ल - मनजीत भोला
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1122 1122 22 सामने आके जो एहसान ने अँगड़ाई ली। आपके भी तो गिरेबान ने अँगड़ाई ली। …
सावन मनुहार - लोकगीत (मिर्ज़ापुरी कजरी) - संजय राजभर "समित"
हे! राजा जईबय हम नहिअरवा, मनवा लागल हो ना। सखियाँ सहेलियन से करबय मुलाक़ात हो, आपन-आपन सुख-दुःख क करबय बात हो। हे! राजा गईबय हम कजरिया…
आप ख़्वाब हो जाओ - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 आप दिल की किताब हो जाओ। ज़िंदगी का हिसाब हो जाओ।। आपको पढ़ सकूँ सलीक़े से, दो घड़ी म…
जन्मदिन - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
प्रणय प्रयाण होता है घर में, देते हैं सब मुबारकबाद। छोटे प्यार देते हैं हमको, बड़े देते हैं आशीर्वाद।। हर साल जो आता उत्साह लेकर, ख़ुशि…
अब तन्हाइयों में बैठना छोड़ दिया है - कविता - शाहरुख खान
हज़ारों से बचाकर अपने आशियाने को, अपने हाथों से ख़ुद ही तोड़ दिया है! मेरे क़दम जो जाते थे तेरी गलियों में, उन्हें मयख़ाने की तरफ़ मोड़ …
ये ज़िंदगी है जनाब - कविता - केवल जीत सिंह
जिस्म के अस्तर को ज़िंदगी उधेड़ती रहती है। तन मन को रूई की तरह धुनती रहती है। अंतरमन को पिंजती रहती है। आदमी के वजूद को बिगाड़ती, बिखेर…
काग़ज़ की कश्ती - कविता - वर्षा अग्रवाल
काग़ज़ की कश्ती बना, बचपन बीता सारा, ना होश खाने पीने का, था बचपन आवारा। कितनी यादें सुनहरी, था प्यार का एहसास, सिवाय पक्की दोस्ती के न…
आँखें - कविता - कुमुद शर्मा "काशवी"
ये आँखे अब बूढ़ी हो चली है अधूरे ख़्वाबों को सँजोते सँजोते, जो देखती थी, सुनहरे ख़्वाब कभी मचलती थी चपलता से तुझे रिझाने को, तुम कहते, म…
तुम मिले जब से मुझे मौसम सुहाना हो गया - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 तुम मिले जब से मुझे मौसम सुहाना हो गया। ज़िंदगी जीने का इक सुंदर बह…
तुम्हारे इश्क़ को ही पूजती हूँ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती : 1222 1222 122 तुम्हारे इश्क़ को ही पूजती हूँ। मग़र तक़दीर से मैं जूझती हूँ।। सजाया था कभी जो फूल ल…
गाँव आज भी ऐसा है - कविता - लखन "शौक़िया"
दरवाज़े दीवार हैं अपने, आँगन बीच खेलते सपने, मस्तों का झुंड यहाँ रहता है, गाँव आज भी ऐसा है।। रिश्तों में मर्यादा निभती, मिलवर्तन की कल…
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? - कविता - स्मृति चौधरी
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? कैसी तस्वीर बनाऊँ? मन और देह की भाषा, परिभाषा लिख ना पाऊँ! उंगली थाम सिखाया चलना, सतपथ की दिशा बताई, साहस न…
समय चक्र - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव "ओम"
समय चक्र एक ऐसा चक्र है जो बीज को फल बनाता, आदमी को औक़ात दिखाता, कभी राजा बनाता तो कभी भिखारी बना देता। समय की धुरी पर बस चकरघिन्नी ब…
और मैं बन गई मम्मा - संस्मरण - ब्रह्माकुमारी मधुमिता "सृष्टि"
गोधूलि बेला में, मैं ध्यान करने जा रही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी, बेटू ने कहा "मम्मा मेरा सीजीएल का रिजल्ट आ गया, मेरा रैंक भी…