संदेश
उत्तरदायित्व - लघुकथा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
माहिष्मती गाँव में ललिता देवी नामक एक सुसभ्य सुसंस्कृत महिला रहती थी। उनके पति गौरी शंकर एक पढ़े लिखे और निहायत भद्र स्वभाव के स्वाभिमा…
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं - कविता - असीम चक्रवर्ती
मौसम है ख़ुशगवार आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं प्रीत जगाते, एक प्यार सजाते, प्रेम की कोई पाती फिर से पढ़ते हैं, आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं। हर दिल …
प्रेम पिपासा - गीत - अभिनव मिश्र "अदम्य"
चंचल चितवन रूप देखकर, मैं अपना दिल हारा हूँ। प्रेम पिपासा में भटके जो, वो आशिक़ आवारा हूँ। मेरे मन के तार छेड़ता है गोरी तेरा यौवन, तुझक…
भगोड़ों का क्या है भरोसा - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
भगोड़ों का क्या है भरोसा, आज इधर हैं तो कल हैं उधर। देखा जिसे, कि मुर्गा है मोटा, जमाया वहीं अपना घर।। भगोड़ों का क्या है भरोसा, आज…
प्रार्थना - कविता - रूचिका राय
हे प्रभु सुन लो इतनी विनय हमारी, रोग बीमारी से मुक्त हो दुनिया सारी, छल दम्भ द्वेष मन में नही कभी हो, तेरे कृपा से पार करूँ मैं बाधा स…
रामायण कथा के रोचक अंश - वृत्तांत - ज्योति सिन्हा
सभी धर्मों में सबसे बड़ा धर्म है... "त्याग" नाम का धर्म! आइए इस त्याग को रामायण की एक कथा में ढूँढते हैं, बहुत आसानी से मिल …
बादल - कविता - डॉ. ममता पंकज
वो देखो दूर गगन में बादलों के अंक में, प्रेम पनप रहा है। गरजता हुआ मिलन ये प्रणय निवेदन, गहरा झाँक रहा है। ऐनक जैसा आवरण देख रहा लावण…
वतन - आल्हा छंद - महेन्द्र सिंह राज
वतन हमारा भारत प्यारा, हम सब जन हैं उसकी शान। अपनी संस्कृति सबसे प्यारी, जो है भारत की पहचान।। इस धरती का मान बढा़ए, राम कृष्ण जैसे …
एक पल - आलेख - सुधीर श्रीवास्तव
समय का महत्व हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में …
अहसास - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"
जब से तू आया है मेरी ज़िंदगी में, ज़िंदगी में अहसासों को आगे बढ़ाया तुमने। अहसास हुआ ज़िम्मेदारी का, बिन डोर उड़ रही थी यह ज़िंदगी की पतंग…
एक जवाब - कविता - राम कुमार निरंकारी
एक बात अगर मैं पूछूँ बोलो जवाब दोगे...? कौन है वो जो हरे भरे पेड़ो के काटने का अधिकार देता है? कौन है वो जो इठलाती चलती नदी की चाल ब…
आदमी - कुण्डलिया छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
बतलाते हैं, आदमी, है संवेदन हीन। पागुर करता मौज में, ख़ूब बजाओ बीन।। ख़ूब बजाओ बीन, नहीं वह कुछ भी सुनता। केवल अपने स्वार्थ, सिद्धि के स…
कविता - कविता - राजेश "बनारसी बाबू"
एक छोटी सी रचना है, एक कवि की परिकल्पना है, कविता दिलों के तार है, कविता शब्दों का भंडार है, कविता कवि की वास्तविकता है, कविता दिलों क…
तुम्हारी नहीं पर जवानी लिखी है - ग़ज़ल - प्रशान्त "अरहत"
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 तुम्हारी नहीं पर जवानी लिखी है। इबारत किसी की पुरानी लिखी है।। मेरी डायरी में न…
पिता - कविता - डॉ. अमृता पटेल
कई शाम सिसकियाँ ली थीं फ़ोन पर मैंने, और आप अगले ही दिन मेरे होस्टल में होते थे। 'बालमन' अंदाज़ा ना था उसकी व्यस्तता, ज़िम्मेदारि…
जीवन - कविता - प्रभात पांडे
रोने से क्या हासिल होगा, जीवन ढलती शाम नहीं है। दर्द उसी तन को डसता है, मन जिसका निष्काम नहीं है।। यह मेरा है, वह तेरा है, यह इसका है,…
मुग्धा अधीर हिय जाने - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अनुराग हृदय नवनीत मधुर मधुभाष प्रीत मन भाने। मधुमास नवल किसलय कोमल कुसुमित निकुंज हिय जाने। मधुगान मुदित सुन कोकिल स्वर मन वियोग रति म…
मेरा किसान - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
श्रम बिंदु बहता जाए, काम वह तो करता जाए। सर्दी, गर्मी या हो बरसात, मेहनत करता है दिन-रात। खेतों में वह अन्न उगाता, अन्न तभी हमें मिल प…
अदृश्य योद्धा - कविता - समय सिंह जौल
कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ी जा रही जंग में, सेनापति के रूप में अदृश्य योद्धा लड़ रहे संग में। डटकर खड़े इन योद्धाओं को ना अच्छा मास्क अस्त्र …
कामयाबी का परिणाम - लघुकथा - गाज़ी आचार्य "गाज़ी"
एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे। राम और श्याम की माता कमला देवी उन्हें बचपन में …
लेकिन क्या मैं सोचता रह जाऊँगा - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
रात में सूरज को तरसता हूँ, दिन में धूप से तड़पता हूँ, आख़िर क्या होगा मेरा...? मै हूँ कहाँ इस यात्रा में...? सोचता हूँ तो पाया! मुझे ना…
संस्कृति - कविता - बृज उमराव
वैदिक संस्कृति के पोषक बन, नैया के खेवनहार बनो। श्रृष्टि श्रजन की धुरी हो तुम, प्रकृति के पालनहार बनो।। राष्ट्र धर्म का निज दृढ़ता से,…
देखो ये भूखा प्यासा - कविता - अंकुर सिंह
देखो ये भूखा प्यासा, घर परिवार छोड़ चला। दो पल की रोटी ख़ातिर, अपनों से मुँह मोड़ चला।। उदर में जब उठती ज्वाला, खा रोटी होता मतवाला। क…
बोल लेखनी कुछ तो बोल - गीत - रमाकांत सोनी
अमन चैन शांति ग़ायब, सिंहासन हो डाँवाडोल, डगमगा रही हो व्यव्स्था, बोल लेखनी कुछ तो बोल। आस्तीन में सर्प पल रहे, नाटक कितने छल-छद्म के, …