अवतरण मुदित उनसठ वसन्त - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" जी के उनसठ वसन्तोत्सव पर गीत

अवतरण मुदित उनसठ वसन्त,
पथ कंटिल पीड, कहीं फूल खिले। 
मधुमास मुदित साफल्य सृजन, 
कहीं छल प्रपंच खल शूल मिले। 

नित सदाचार संस्कार पथिक, 
बन कर्मवीर सत्कर्म चले। 
संघर्ष रथी बन धीर वीर, 
साहस संयम ले साथ बढ़े। 

पर था अनीश रख स्वाभिमान, 
आत्मनिर्भर जीवन पार्थ बने। 
सह विघ्न विविध  पथ यायावर, 
नित सारस्वत सोपान चढ़े। 

संगम स्नेहिल पा ममतांचल, 
जनकात्म छत्र वरदान बने। 
परब्रह्म गुरु जल अवगाहन, 
विद्या वारिधि उपमान मिले।

उन्मुक्त उड़ान भरा था नभ, 
था स्पर्श ध्येय निज क्षितिज मिले। 
विधि लेख पंख जा टकराहट, 
पतनोन्मुखी कहीं आज पड़े। 

दुर्भाग्य पीड जीवन अवतल, 
अरमान सकल भुला धूल मिले। 
बस, कौलिक मर्यादित जीवन, 
पुरुषार्थ सार्थ परमार्थ चले। 

गुरुता यौवन जीवनयापन, 
गतिमान मुदित पथ साथ रहे। 
आया विप्लव घन दुखवर्षण, 
पर सावन भावन मान बढ़े। 

ले करवट जीवन परिवर्तन, 
निशिचन्द्र कला रजनीश मिले। 
सुकीर्ति फलक अनमोल रतन, 
शिव ललित फलित मकरन्द खिले। 

आशीष प्रीत पावन संगम, 
नवनीत मीत अरुणाभ मिले। 
नित भक्ति प्रीत भारत जीवन, 
मधुकर निकुंज मधुमास रमे। 

हो मति विवेक जबतक जीवन, 
माधव मधुवन नित खिले रहे। 
बस ईश कृपा सिर शरणागत, 
सद्भाव सुरभि मुस्कान खिले। 

सम्मान मुदित बलिदान वतन, 
वरदान क्षणिक अरमान बने। 
जनतंत्र प्रेम जनहित सेवन, 
औदार्य भाव परलोक चलें। 

सारोग्य सबल कविकार हृदय, 
गुरु मातु पिता पद नमन करे। 
स्नेहाशीष सतत सद्मित्र सकल, 
चहुँमुखी प्रगति यश वतन बढ़े।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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