स्मृति चौधरी - सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? - कविता - स्मृति चौधरी
सोमवार, जुलाई 12, 2021
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं?
कैसी तस्वीर बनाऊँ?
मन और देह की भाषा,
परिभाषा लिख ना पाऊँ!
उंगली थाम सिखाया चलना,
सतपथ की दिशा बताई,
साहस नित ही रहे बढ़ाते,
तुमने जीत की राह दिखाई।
हर कठिनाई सरल बनी,
हर संभव हल बतलाया,
संस्कार भरे संस्कृति सिखलाई,
स्वाभिमान का अर्थ बताया।।
उसी भाव की महिमा के,
कुछ अनुभव आज बताऊँ।
देव तुल्य हैं! पिता हमारे,
नित श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ।
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं...
अपनी व्यथा जो पीड़ा,
हँस-हँसकर थे सह जाते,
जीवन की हर बाधा का,
चुटकी में हल बतलाते।
धीरज दुख में सिख लाते,
शीतल चंदा जैसा तुम साया,
जीवन से हर ताप मिटाया,
तुम थे जैसे कल्पतरु की छाया।।
सुखमय छाँव पिता की,
सारे जग से यही बताऊँ।
कभी न भूलो जीवन में,
मैं सबको यही सिखाऊँ।
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं...
निश्चल प्रेम पिता का,
मैं सब से यही बताऊँ।
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