वृद्धाश्रम में माँ को बेटे का इंतज़ार - कविता - डॉ. ललिता यादव

एक माँ जिसे उसका बेटा वृद्धाश्रम में हर रविवार मिलने आने की बात कहकर छोड़ गया है। माँ उसका इंतज़ार कर रही है, कविता के रूप में कहती है-

कह कर तो गया था तू,
आऊँगा हर इतवार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

फोन घुमाती हूँ,
मैं राह निहारती हूँ।
आहट जो थोड़ा आए,
मैं दौड़ के जाती हूँ।
आज पूरा दिन तेरा मैं,
कर दी इंतज़ार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

माँ फिर सोचती है कि- कहीं वह काम से तो नहीं थक गया, अभी ही तो कमाने के दिन है। अभी काम नहीं करेगा, तो कब करेगा? कविता के माध्यम से कहती है-

काम से तू थक गया,
या छुट्टी ना मिली।
ठीक से सोया नहीं,
या नींद ना खुली।
भुला नहीं है तू मुझे,
इतना तो है एतबार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

दिन है जवानी के,
इसे बर्बाद ना तू कर।
दिन है कमाने के अभी,
कमा के अपने घर को भर।
तिल तिल के जोड़ने से,
बसता है घर संसार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

उस वृद्धाश्रम में माँ के जैसी और भी महिलाएँ हैं शीला, मीना, सीमा, नीमा। ये सभी अपने बेटों के इंतज़ार कर रही हैं। अभी अभी शीला और मीना के बेटे मिलने आए हैं। उन्हें देखकर माँ कहती है-

शीला का बेटा आया,
मीना का बेटा आया।
चेहरा इनका खिल गया,
पोता जो साथ आया।
दोनों बलैया ले रही थी,
अपने पोते के हज़ार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

अब माँ की बेचैनी थोड़ी और बढ़ जाती है, उसे बहू के प्रति सन्देह होने लगता है। वह कहती है-

माँगे बहू गर साड़ी,
उसे साड़ी भी दिलाना।
वो घूमना जो चाहे,
उसे संग घुमाना।
मेरे लिए तो बस तेरा,
आ जाना ही है प्यार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

राह देखते-देखते जब थक जाती है और बेटा नहीं आता है, तो वह मन को दिलासा देते हुए कहती है-

क्या हुआ जो बेटा तुम,
आज मुझसे दूर हो।
तुम आज भी मेरे वही,
हीरा कोहिनूर हो।
जैसा भी हो यह जीवन,
पर कम ना होगा प्यार।
क्यूँ न आया बेटा,
तू मिलने अबकी बार।

वृद्धाश्रम की सारी सहेलियाँ माँ को समझाते हुए कहती हैं-

छोड़ गया बेटा,
अब कर न इंतज़ार।
हो गया वो पत्थर,
तू कर ले एतबार।
हो गए हैं हम भी,
इस धोखे के शिकार।
आएगा न बेटा,
अब मिलने अबकी बार।

आए थे अकेले और,
जाना भी अकेले।
छोड़ना है अब रिश्ते,
नाते और झमेले।
कर ना बेटे को अब तू,
याद बार-बार।
आएगा न बेटा,
अब मिलने अबकी बार।

हम ही तेरे संग साथी,
हम ही तेरे यार।
ख़त्म हुआ नाता,
कर ले शिकवे तू हज़ार।
आएगा न बेटा,
अब मिलने अबकी बार।
    
माँ रोते रोते सो जाती है और अन्य सहेलियाँ उसके माथे को प्यार से सहला रही हैं। माँ अब भी इंतज़ार में है कि शायद बेटा मिलने आ जाए...।

डॉ. ललिता यादव - बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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