कभी नहीं मैं हारूँगी माँ,
मैं तेरी ही बेटी हूँ।
चाहे मन उद्वेलित हो
या जीवन यह रसहीन रहे,
उड़ जाने को मन तरसे
या गति से अपने क्षीण रहे,
नया सवेरा आएगा
ये जपती हूँ, फिर लेटी हूँ।
कभी नहीं मैं हारूँगी माँ,
मैं तेरी ही बेटी हूँ...
डोली से अंगनारों तक,
यादों के गलियारों तक,
तुमको याद किया मैंने,
तुमको रोज़ जिया मैंने,
कर्तव्यों को जाना है,
करती ना मैं हेठी हूँ।
कभी नहीं मैं हारूँगी माँ,
मैं तेरी ही बेटी हूँ...
पापा की कविताओं में,
भैया की आशाओं में,
रोटी और पकवानों में,
बच्चो के सामानों में,
जीती और उगा करती
मैं अरमानों की खेती हूँ।
कभी नहीं मैं हारूँगी माँ,
मैं तेरी ही बेटी हूँ।।
प्रीति त्रिपाठी - नई दिल्ली