तुम्हारे इश्क़ को ही पूजती हूँ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 122

तुम्हारे इश्क़ को ही पूजती हूँ।
मग़र तक़दीर से मैं जूझती हूँ।।

सजाया था कभी जो फूल लव पे,
महक तेरी उसी में सूँघती हूँ।

भले मिल जाए मुझको मौत भी अब,
फ़क़त तुझको हमेशा ढूँढती हूँ।

दिखे जलता भले ही आशियाना,
मग़र तुझको कभी ना भूलती हूँ।

तुम्हीं हो रूह की ताक़त तुम्हीं मंज़िल,
तुम्हें मैं ज़िन्दगी में खोजती हूँ।

तुम्हीं फ़रियाद में शामिल रहे हो,
तुम्हें सुषमा ख़ुदा मैं मानती हूँ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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