हज़ारों से बचाकर
अपने आशियाने को,
अपने हाथों से ख़ुद ही
तोड़ दिया है!
मेरे क़दम जो जाते थे
तेरी गलियों में,
उन्हें मयख़ाने की तरफ़
मोड़ दिया है!
जो छेड़ते थे
तुझे मनचले,
उनके कानों को
जोर से मरोड़ दिया है!
ख़ुशियाँ जो
रूठी थी तुझसे,
भरकर चाबी
तेरी तरफ़ छोड़ दिया है!
जो टुकड़े कर
बिखेरे थे मेरे दिल के,
उन्हें समेटकर अपने हाथों से
तसल्ली से जोड़ दिया है!
तेरे दिल में कोई और है,
यह सुना जब से मेरे दिल ने,
इसने धड़कना छोड़ दिया है!
तेरी यादों में इतना खो गया हूँ,
तेरा ख़्याल आया और,
नल खुला छोड़ दिया है!
तू ख़फ़ा है जब से,
कुदरत की करामत है,
मेरे आशियाने में चाँद ने
चमकना छोड़ दिया है !
और जो देखकर मुझे,
फड़फड़ाते थे अपने पिंजरे में,
लगता है उन्होंने
फड़फड़ाना छोड़ दिया है!
तूने ठुकराया है जब से,
मेरी आँखों ने दरिया भर,
अशको को निचोड़ दिया है
अब तन्हाइयों में बैठना छोड़ दिया है!
शाहरुख खान - ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)